Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी, यहां मरीजों की ठीक होती है बीमारी… जानिए क्यों है यह खास

    Updated: Thu, 24 Jul 2025 02:10 PM (IST)

    झारखंड के देवघर में भगवान शिव का वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर है जहां श्रावण में लाखों श्रद्धालु आते हैं। रामायण काल से जुड़ी कथा के अनुसार रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने की कोशिश की। मगर विष्णु देव की लीला से वह झारखंड में ही स्थापित हो गया था। आइए जानते हैं इसकी पौराणिक कहानी।

    Hero Image
    लोक-मान्यता के अनुसार, यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। झारखंड के देवघर में भगवान शिव का बहुत ही पवित्र और भव्य मंदिर स्थित है। हर साल सावन के महीने में यहां श्रावण मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर करीब 100 किलोमीटर तक कांवड़ उठाकर बाबा को जल चढ़ाते हैं। इस दौरान यहां आध्यात्मिक आभा देखने लायक होती है। इस मंदिर की कहानी (Vaidyanath Jyotirlinga History) रामायण काल से जुड़ी है। 

    ...तो लंका में होता यह ज्योतिर्लिंग 

    पौराणिक कथाओं के अनुसार (Vaidyanath Jyotirlinga History), रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की। इसके बाद उसने एक-एक करके अपने 9 सिर काट शिवलिंग पर चढ़ाने दिए। जब वह अपना अंतिम सिर काटने वाला था, तो शिवजी प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। 

    रावण ने लंका में शिवलिंग को स्थापित करने की आज्ञा मांगी। शिवजी ने उसे लिंग देकर कहा कि धरती पर इसे जहां भी रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा। यह जानकर सभी देवता परेशान हो गए। दरअसल, रावण पहले ही बहुत शक्तिशाली था। 

    यदि वह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाकर स्थापित कर लेता, तो उसकी शक्ति और भी बढ़ जाती। वह अपने अभिमान और घमंड में देवताओं के लिए भी खतरा बन जाता। साथ ही दुनिया में अशांति और अराजकता का माहौल बना सकता था। 

    तब विष्णु देव ने रची लीला 

    भगवान विष्णु को जब रावण की इस योजना का पता चला, तो उन्होंने रावण को शिवलिंग को लंका ले जाने से रोकने के लिए हस्तक्षेप किया। उन्होंने वरुण देव को आदेश दिया कि वह रावण को शिवलिंग ले जाने से रोक दें। 

    इस ज्योतिर्लिंग को लेकर रावण जब रास्ते में था, तो उसे लघुशंका लगी। तब उसे एक ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने उसे बुलाकर शिवलिंग थमा दिया और लघुशंका करने चला गया। जब रावण लौटा, तो उसने देखा कि ग्वाला शिवलिंग को वहां रखकर कहीं चला गया था। 

    यह भी पढ़ें- 79 डिग्री देशांतर को कहते हैं ‘शिव शक्ति रेखा’, हजारों साल पहले यहां सीधी रेखा में बने 7 शिवालय

    फिर वहीं स्थापित हो गया ज्योतिर्लिंग

    इसके बाद रावण ने शिवलिंग को उठाने की लाख कोशिशें की, मगर सफल नहीं हो पाया। इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग की प्रतिस्थापना की और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग चले गए। लोक-मान्यता के अनुसार, यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है। इसीलिए इसे कामना लिंग भी कहा जाता है। 

    बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग क्यों पड़ा नाम 

    कहते हैं कि रावण के कटे हुए सिरों को शिवजी ने फिर से ठीक कर दिया था। साथ ही उसे सिरों के कटने की पीड़ा से भी वैद्य यानी चिकित्सक बनकर मुक्ति दिलाई थी। इसी वजह से इस ज्योतिर्लिंग को वैद्यनाथ कहा गया। कहते हैं कि यहां भगवान वैद्यनाथ का पूजन और अभिषेक करने वाले के रोग-दोष से मुक्ति मिलती है। 

    यह भी पढ़ें- त्रयोदशी तिथि का क्षय होने से इस बार 24 जुलाई को है हरियाली अमावस्या, जानिए शुभ मुहूर्त

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।