Kawad Yatra 2025: कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा, क्या-क्या होते हैं उनके नियम
Kawad Yatra 2025 मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद भोलेनाथ ने हलाहल विष पिया था जिससे उनका शरीर नीला पड़ गया। देवताओं ने उनके शरीर को शांत करने के लिए जलाभिषेक किया। सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा निकाली थी और रावण भी गंगाजल लेकर गया था। आइए जानते हैं कितने तरह की कांवड़ निकाली जाती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मान्यता है कि भोलेनाथ ने समुद्र मंथन के बाद हलाहल विष पिया था। इस के जहर की वजह से उनका शरीर नीला पड़ गया था। तब उनके शरीर की गर्मी को शांत करने और विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए देवताओं ने उनका जलाभिषेक किया था।
इसके अलावा यह भी मान्यता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा निकाली थी। त्रेता युग में भगवान शिव को लंका में स्थापित करने के लिए रावण भी हरिद्वार से गंगाजल को कांवड़ में लेकर गया था। तब से सावन में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति जताने के लिए कांवड़ यात्रा निकाली जाती है।
जानिए कितने तरह की होती है कांवड़
भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त अपने-अपने तरह के से कांवड़ यात्रा निकालते हैं। वैसे यह कहई प्रकार की होती है, मगर मुख्यतः चार प्रकार की कांवड़ यात्रा प्रसिद्ध है। इसमें से पहली सामान्य कांवड़ यात्रा, दूसरी खड़ी कांवड़ यात्रा, तीसरी डाक कांवड़ और चौथी दंड कांवड़ यात्रा है। जानते हैं इनमें क्या अंतर हैं क्या नियम हैं।
सामान्य कांवड़: सबसे ज्यादा संख्या में लोग सामान्य कांवड़ लेकर निकलते हैं। दरअसल, इस तरह की कांवड़ यात्रा में थकान होने पर श्रद्धालु कांवड़ को स्टैंड पर रखकर रास्ते में आराम कर सकते हैं। इस यात्रा के दौरान कांवड़ यात्री बोल बम के जयकारे लगाते हुए निकलते हैं।
खड़ी कांवड़: सामान्य कांवड़ की अपेक्षा यह थोड़ी मुश्किल होती है। इस यात्रा के लिए दो साथी चलते हैं। जब एक यात्री थक जाता है, तो दूसरा साथी कांवड़ उठाकर उसे हिलाता रहता है। इस दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता और कांवड़ को कभी भी स्थिर नहीं होने दिया जाता।
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डाक कांवड़: इसके बाद सबसे मुश्किल डाक कांवड़ है, जिसमें गंगाजल भरने के बाद 24 घंटे के भीतर जलाभिषेक के लिए उसे शिवालय में पहुंचाना होता है। इस यात्रा में शामिल कांवड़ यात्री लगातार चलते हैं या तेजी से दौड़ते रहते हैं। यात्रा के दौरान उन्हें कोई नहीं रोकता है और उनके लिए अलग रास्ता बनाया जाता है।
दंड कांवड़: इसी तरह की एक और मुश्किल कांवड़ है दंड कांवड़। इसमें दंड बैठक करते हुए कांवड़ यात्रा पूरी की जाती है। इस यात्रा को पूरा करने में करीब एक महीने का समय लग जाता है।
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