ब्रह्म पुराण में मिलती है सूर्य देव की उत्पत्ति की कथा, जन्म लेते ही देवताओं को वापस दिलाया स्वर्ग
हिंदू धर्म में सूर्य देव को पूजनीय माना जाता है। साथ ही यह भी मान्यता चली आ रही है कि रोजाना सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल अर्पित करने से कुंडली में सूर्य की स्थित मजबूत होती है। जिससे साधक को सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप सूर्य देव की उत्पत्ति की कथा जानते हैं अगर नहीं तो चलिए जानते हैं इस विषय में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सूर्य देव ग्रहों का राजा के साथ-साथ पंचदेवों में से भी एक माने गए हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की आराधना के लिए रविवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है। सूर्य देव को भास्कर, आदित्य, भानु आदि कई नामों से जाना जाता है। सूर्य देव के जन्म (Lord Surya Birth) को लेकर एक बड़ी ही रोचक कथा मिलती है, जिससे जानना काफी दिलचस्प होगा।
अपनी माता के पास पंहुचे देवता
ब्रह्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, पहले पूरे संसार में कोई प्रकाश नहीं था जिस कारण दिन और रात में भी कोई भेद नहीं था। एक बार राक्षसों और देवताओं में युद्ध छिड़ गया। दैत्य, देवताओं पर भारी पड़ने लगे, जिस कारण देवताओं को स्वर्ग छोड़कर भागना पड़ा। तब सभी देवता अपनी माता अदिति के पास गए और उनसे मदद मांगने लगे।
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अदिति ने मांगा ये वरदान
तब अदिति ने सूर्य देव की उपासना की और उनसे यह वरदान मांगा कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लें। उसकी इच्छा पूर्ति के लिए सूर्य देव की कृपा से सुषुम्ना नाम की किरण से उसके गर्भ में प्रवेश किया। गर्भ धारण करने के बाद अदिति रोजाना सूर्य देव के निमित्त कठिन व्रत करने लगीं। तब उनके पति ऋषि कश्यप ने उनसे कहा कि आप इतना कठिन व्रत-अनुष्ठान करती हैं, इससे शिशु को हानि पहुंच सकती है।
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प्रकाशित हो गया संसार
तब देवी अदिति ने अपने योगबल पर अंड रूप में गर्भ को बाहर कर दिया, जिससे अत्यंत दिव्य तेज से प्रज्वलित हुआ। भगवान सूर्य शिशु रूप में उस गर्भ से प्रकट हुए और पूरा संसार रोशनी से भर गया और इस तेज से डरकर दैत्य भाग खड़े हुए। इसके बाद स्वर्ग पर फिर से देवताओं का राज हो गया। माना जाता है कि उसी दिन से सूर्य देव अंडज रूप में आकाश में स्थापित हो गए। माना जाता है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर सूर्य देव का जन्म हुआ था, जिसे रथ सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।
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