रावण और मंदोदरी की मुलाकात का साक्षी रहा है ये मंदिर, पूजा करने से मिलता है मनचाहा वर
आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका संबंध रामायण काल से माना जाता है। इस मंदिर को लेकर यह कहा जाता है कि रावण और मंदोदरी की पहली भेंट इसी मंदिर में हुई थी। इस मंदिर को लेकर अन्य कई तरह की मान्यताएं भी प्रचलित हैं। तो चलिए जानते हैं इस अद्भुत मंदिर के बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दशानन रावण को अपने ज्ञान और बल के लिए जाना जाता है। रामायण में भी रावण की पत्नी मंदोदरी का जिक्र अन्य पत्नियों से ज्यादा मिलता है। रावण की पत्नी मंदोदरी, एक पतिव्रता नारी थी, जो पंच कन्याओं में से भी एक है। ऐसा माना जाता है कि जिस मंदिर में रावण और मंदोदरी की मुलाकात (Ravana Mandodari Story) हुई थी, वहां आज भी शिव जी की आराधना करने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
कौन थी मंदोदरी
मंदोदरी असल में राक्षसराज मयासुर और अप्सरा हेमा की बेटी थीं। जिसे लेकर यह मान्यता भी प्रचलित है कि मयासुर ने मंदोदरी को गोद लिया था। इसी के साथ वह पंच कन्याओं में से एक थी, जिन्हें यह वरदान मिला हुआ था कि विवाह के बाद भी इनका कौमार्य कभी भंग नहीं होगा।
यहां हुई थी मुलाकात
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मंदोदरी भी भगवान शिव की भक्त थी। माना जाता है कि उसने मेरठ में स्थित श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर में अच्छे वर की चाह में भगवान शिव की आराधना की। साथ ही यह भी माना जाता है कि इसी मंदिर में रावण और मंदोदरी की पहली बार मुलाकात भी हुई थी। कहा जाता है कि इसी मंदिर में मंदोदरी ने अपनी कठोर तपस्या से, उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया, जिसके फलस्वरूप शिव जी ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब मंदोदरी ने भगवान शिव से यह वरदान मांगा था कि मेरा पति, विश्व का सबसे ज्यादा विद्वान और शक्तिशाली व्यक्ति हो। माना जाता है कि इसी के फलस्वरूप उसका विवाह रावण से हुआ।
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कैसे पड़ा मंदिर का नाम
श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार मराठों ने करवाया गया था, इसलिए मंदिर के शिखर और प्रवेश द्वार मराठा शैली में बने हुए हैं। कहा जाता है कि उस समय में इस स्थान पर काफी ज्यादा मात्रा में बिल्व वृक्ष यानी बेल के पड़े पाए जाते थे, इसलिए इस मंदिर को श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
क्या है मान्यता
श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर भगवान शिव और माता गौरी के लिए समर्पित है। साथ ही मंदिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त यहां पूरे श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करता है और 40 दिनों तक दीपक जलाता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। खासकर सावन के महीने में जलाभिषेक के लिए यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
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