श्री रामलला Pran Pratishtha Mahotsav पर ऐसे करें प्रभु की पूजा, जानें भोग समेत अन्य बातें
अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ 11 जनवरी (Shri Ram Lalla Pran Pratishtha Mahotsav 2025 Date) को है। इस तिथि का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा वर्षगांठ का महोत्सव 11 से 13 जनवरी तक जारी रहेगा। इस दौरान राम मंदिर में कई विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। ऐसे में अधिक संख्या में श्रद्धालु रामलला के दर्शन करेंगे।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ram Lalla Pran Pratishtha Mahotsav 2025: हिंदू पांचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि बेहद खास मानी जा रही है, क्योंकि इस तिथि पर यानी 11 जनवरी को श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ मनाई जाएगी। इस शुभ अवसर पर राम मंदिर में श्री रामलला की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। साथ ही लोग अपने-अपने घरों में भी श्री रामलला उपासना करेंगे। धार्मिक मान्यता है कि प्रभु श्री राम जी सच्चे मन से पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में चलिए आपको इस आर्टिकल में बताते हैं श्री रामलला की पूजा विधि और भोग समेत आदि महत्वपूर्ण बातों के बारे में।
ऐसे करें पूजा (Shri Ram Lalla Puja Vidhi)
इस दिन सुबह जल्दी उठें और भगवान श्री राम के ध्यान से दिन की शुरुआत करें। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। मंदिर में भगवान राम संग माता सीता और लक्ष्मण की प्रतिमा को विराजमान करें। अब फल, फूल, धूप, दीप, दूर्वा, अक्षत, कुमकुम अर्पित करें। मां सीता को सोलह श्रृंगार का सामान चढ़ाएं। दीपक जलाकर आरती करें। मंत्रों का जप करें। जीवन में सुख- शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें।
इन चीजों का लगाएं भोग (Shri Ram Lalla Bhog)
श्री रामलला जी के भोग में सूजी का हलवा, फल, मिठाई, पंजीरी, दूध और दही को शामिल करें। माना जाता है कि इन चीजों का भोग लगाने से प्रभु प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मुरादें पूरी करते हैं।
इन चीजों का करें दान
श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के शुभ अवसर पर पूजा-अर्चना करने के बाद मंदिर या गरीब लोगों में गर्म कपड़े, अन्न और धन समेत आदि चीजों का दान करें। माना जाता है कि इन चीजों का दान करने से जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होती है।
भगवान श्री राम की आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
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