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    Shardiya Navratri 2023: माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए खेला जाता है गरबा, जानिए इसका धार्मिक महत्व

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Wed, 11 Oct 2023 03:41 PM (IST)

    Shardiya Navratri 2023 Garba 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के दौरान साधक माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं साथ ही व्रत भी रखते हैं। नवरात्रि के दौरान गरबा खेलने का भी प्रचलन है। यह मुख्यतः गुजरात में खेला जाता है लेकिन अब इसकी धूम भारत से लेकर विदेशों में भी होने लगी है।

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    Shardiya Navratri 2023 Garba जानिए गरबे का धार्मिक महत्व।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Navratri Garba 2023: सनातन धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा तिथि से होती है। इस साल नवरात्रि का शुभारंभ 15 अक्टूबर, 2023 रविवार के दिन से हो रहा है।

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    इन नौ दिनों में माता रानी के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस दौरान गरबा खेलने का भी चलन है। जितना रोचक ये खेल लगता है उतना ही रोचक इसके पीछे का इतिहास भी है। ऐसे में आइए जानते हैं गरबे का धार्मिक महत्व।

    कैसे प्रचलन में आया गरबा शब्द

    भारत में नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया खेलने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। पहले ये खेल केवल गुजरात और राजस्थान तक ही सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और अब इस बड़े ही धूमधाम से पूरे भारत में खेला जाता है। गरबा शब्द असल में संस्कृत शब्द गर्भ-दीप से बना है। यहां गर्भ नारी की सृजन शक्ति का प्रतीक है। गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है, जो आज चलन में है।

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    ऐसे खेला जाता है गरबा

    सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार, नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के घड़े में कई छेद किए जाते हैं। इसके बाद एक दीप प्रज्वलित करके इसके अंदर रखा जाता है। साथ ही एक चांदी का सिक्का भी रखा जाता है। इस दीपक को ही दीप गर्भ कहा जाता है, जिसके आस-पास लोग गरबा खेलते हैं। माना जाता है कि गरबा करने से माता रानी प्रसन्न होती हैं।

    इसलिए दीप गर्भ की स्थापना के पास महिलाएं और पुरुष रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर माता शक्ति के समक्ष नृत्य करती हैं। गरबा के दौरान महिलाओं द्वारा 3 तालियां भी बजाई जाती हैं जो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित मानी जाती है। 3 तालियां बजाकर तीनों देवताओं का आह्वान किया जाता है। साथ ही गरबा के दौरान चुटकी, डांडिया और मंजीरों का उपयोग किया जाता है। ताल से ताल मिलाने के लिए स्त्री और पुरुष समूह बनाकर नृत्य करते हैं।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'