Shani Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत पर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा व्रत का पूरा फल
शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित है। इसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस व्रत को करने से सभी कष्टों का अंत होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार 4 अक्टूबर 2025 यानी आज शनि प्रदोष व्रत रखा जा रहा है तो आइए इसकी पावन कथा का पाठ करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। यह व्रत शिव-पार्वती को समर्पित है। कहा जाता है कि इस व्रत का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। कहते हैं कि शनि प्रदोष व्रत की पूजा उसकी कथा के बिना अधूरी मानी जाती है। कथा का पाठ करने से व्रत का पूर्ण फल मिलता है। साथ ही भगवान शिव के साथ शनि देव का भी आशीर्वाद मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, 4 अक्टूबर 2025 यानी आज शनि प्रदोष व्रत रखा जा रहा है, तो आइए इसकी पावन कथा का पाठ करते हैं।
प्रदोष व्रत कथा ( Pradosh Vrat Katha)
एक समय की बात है, अंबापुर गांव में एक गरीब ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का देहांत हो चुका था, इसलिए वह भीख मांगकर अपना और अपने परिवार का पेट पालती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो छोटे बच्चे अकेले मिले। ब्राह्मणी को उन पर दया आई, और वह उन दोनों बच्चों को अपने घर ले आई और अपने बच्चों की तरह पालने लगी। कुछ समय बाद, ब्राह्मणी उन दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई और उनके माता-पिता के बारे में पूछा। ऋषि शांडिल्य ने बताया कि "हे देवी, ये दोनों बालक विदर्भ देश के राजकुमार हैं। गंधर्व नरेश के हमले के कारण उनका राजपाट छिन गया है और वे राज्य से बेदखल हो गए हैं।" यह सुनकर ब्राह्मणी दुखी हुई और उसने ऋषि से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन राजकुमारों को उनका राज्य वापस मिल सके। तब ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को भगवान शिव की पूजा और "प्रदोष व्रत" करने की सलाह दी।
ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने ऋषि के कहे अनुसार पूरी श्रद्धा और लगन से प्रदोष व्रत करना शुरू कर दिया। व्रत के प्रभाव से जल्द ही बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती नाम की एक सुंदर कन्या से हुई। दोनों ने विवाह करने का फैसला किया। अंशुमती के पिता ने जब यह बात सुनी, तो उन्होंने राजकुमारों की मदद के लिए गंधर्व नरेश के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
युद्ध में राजकुमारों को जीत मिली और प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन्हें उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया। राजकुमारों ने राजगद्दी मिलने पर, उस दयालु ब्राह्मणी को अपने दरबार में एक विशेष स्थान दिया। इस तरह, ब्राह्मणी ने भी सुख-शांति से जीवन जिया और वह भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त बन गई।
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