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    सावन शिवरात्रि पर करें शिव चालीसा का पाठ, सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 10:00 PM (IST)

    सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं जीवन में खुशियां आती हैं और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। शिव चालीसा का पाठ करने से सकारात्मकता आती है। इस दिन विधि विधान से पूजा और व्रत करने से धन सुख समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।

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    सावन शिवरात्रि पर शिव-पार्वती की पूजा से पूरी होती हैं मनोकामनाएं।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन मास की शिवरात्रि में महादेव की पूजा का विशेष महत्व है। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है।

    मगर, सावन के महीने में भोलेनाथ के परम भक्त भगवान शिव और मां पार्वती की विधि विधान से पूजा और व्रत करते हैं। इस दिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

    भक्तों के जीवन में खुशियों का आगमन होता है। अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है और धन, सुख, समृद्धि, संतान आदि सभी सुख मिलते हैं। इसके साथ ही इस दिन शिव चालीसा का पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता आती है। 

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    शिव चालीसा (Shiv Chalisa)

    ||दोहा||

    जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

    कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

    चौपाई

    जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

    भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

    अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

    वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

    मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

    कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

    नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

    कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

    देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

    किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

    तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

    आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

    त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

    किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

    दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

    वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

    प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥

    कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

    पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

    सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

    एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥

    कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

    जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥

    दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

    त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

    लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥

    मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥

    स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥

    धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

    अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

    शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

    योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

    नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

    जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

    ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

    पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

    पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥

    त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

    धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

    जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

    कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

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    || दोहा ||

    बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।

    गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार

    तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।

    तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय

    दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।

    कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥

    कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।

    राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥

    ।।इति श्री शिव चालीसा समाप्त।।

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