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    Sawan 2025: सावन में रोजाना पूजा के समय करें इस शक्तिशाली स्तोत्र का पाठ, हर परेशानी हो जाएगी दूर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 01 Jul 2025 01:38 PM (IST)

    सावन माह के पहले सोमवार पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव की पूजा एवं भक्ति करने से साधक को सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी। साथ ही भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुखों का आगमन होगा। सावन सोमवार पर मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।

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    Sawan 2025: सावन महीने का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन महीने की शुरुआत होने वाली है। यह महीना बेहद पावन होता है। इस महीने में रोजाना भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। वहीं, सावन सोमवार पर भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवारी का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत की महिमा शास्त्रों में निहित है।

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    धार्मिक मत है कि सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त परेशानी दूर हो जाती है। अगर आप भी देवों के देव महादेव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाना चाहते हैं, तो सावन महीने में रोजाना भक्ति भाव से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय शिव तांडव स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

    शिव तांडव स्तोत्र के पाठ से देवों के देव महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है। इसके अलावा, साधक को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।  

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    शिव तांडव स्तोत्र

    जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले

    गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।

    डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

    चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥॥

    जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी

    विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।

    धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

    किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥॥

    धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर

    स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।

    कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि

    क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥॥

    जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा

    कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

    मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे

    मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥॥

    सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर

    प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।

    भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक

    श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥॥

    ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा

    निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।

    सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं

    महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥॥

    करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल

    द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।

    धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक

    प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥॥

    नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्

    कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।

    निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः

    कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥॥

    प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा

    वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।

    स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

    गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥॥

    अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी

    रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।

    स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

    गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥॥

    जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस

    द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।

    धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल

    ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥॥

    दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्

    गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

    तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

    समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥॥

    कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्

    विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।

    विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

    शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥॥

    निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

    निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

    तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं

    परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥॥

    प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

    महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

    विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः

    शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥॥

    इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं

    पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

    हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

    विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥॥

    पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं

    यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

    तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां

    लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।