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    Sawan 2025: सावन महीने में रोजाना शिव पूजा के समय जपें ये शक्तिशाली मंत्र, बदल जाएगी आपकी तकदीर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 30 Jun 2025 01:03 PM (IST)

    सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने (Sawan 2025) में भगवान शिव और जगत की देवी मां पार्वती भूलोक यानी धरती पर वास करते हैं। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।

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    Sawan 2025: सावन महीने का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन महीने की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है। यह महीना पूर्णतया देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव और मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त सावन सोमवार का व्रत रखा जाता है।

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    शिव पुराण में निहित है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी हो जाती है। साथ ही मृत्यु के बाद साधक को शिव लोक में स्थान मिलता है। अतः साधक सावन महीने में प्रतिदिन श्रद्धा भाव से भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा करते हैं। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो सावन माह में भगवान शिव की भक्ति भाव से पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

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    शिव मंत्र (Shiv Mantra)

    1. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

    उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

    परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

    सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

    वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

    हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

    एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।

    2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

    उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

    3. नमामिशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं।।

    4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

    5. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

    शिव आह्वान मंत्र (Shiva Aahvaan Mantra)

    ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन ।

    तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती ।।

    वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।

    नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने ।

    आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।

    त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः ।

    नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।

    नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय ।।

    देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम् ।

    नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।

    नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ।।

    अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम् ।

    नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम् ।।

    सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये ।।

    शिव प्रार्थना मंत्र

    करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।

    विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

    ॐ नमो हिरण्यबाहवे हिरण्यवर्णाय हिरण्यरूपाय हिरण्यपतए

    अंबिका पतए उमा पतए पशूपतए नमो नमः

    ईशान सर्वविद्यानाम् ईश्वर सर्व भूतानाम्

    ब्रह्मादीपते ब्रह्मनोदिपते ब्रह्मा शिवो अस्तु सदा शिवोहम

    तत्पुरुषाय विद्महे वागविशुद्धाय धिमहे तन्नो शिव प्रचोदयात्

    महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धिमहे तन्नों शिव प्रचोदयात्

    नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय महादेवाय त्र्यंबकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकाग्नी कालाय कालाग्नी

    रुद्राय नीलकंठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्वराय सदशिवाय श्रीमान महादेवाय नमः

    शिव नमस्कार मंत्र

    शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।

    ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिमहिर्बम्हणोधपतिर्बम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

    शिव बिल्वाष्टकम्

    त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं।

    त्रिजन्म पापसंहारम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्चिद्रैः कोमलैः शुभैः।

    तवपूजां करिष्यामि ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    कोटि कन्या महादानं तिलपर्वत कोटयः।

    काञ्चनं क्षीलदानेन ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनं।

    प्रयागे माधवं दृष्ट्वा ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    इन्दुवारे व्रतं स्थित्वा निराहारो महेश्वराः।

    नक्तं हौष्यामि देवेश ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    रामलिङ्ग प्रतिष्ठा च वैवाहिक कृतं तधा।

    तटाकानिच सन्धानम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    अखण्ड बिल्वपत्रं च आयुतं शिवपूजनं।।

    कृतं नाम सहस्रेण ऐकबिल्वं शिवार्पणं।

    उमया सहदेवेश नन्दि वाहनमेव च।।

    भस्मलेपन सर्वाङ्गम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    सालग्रामेषु विप्राणां तटाकं दशकूपयो:।

    यज्नकोटि सहस्रस्च ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    दन्ति कोटि सहस्रेषु अश्वमेध शतक्रतौ।

    कोटिकन्या महादानम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    बिल्वाणां दर्शनं पुण्यं स्पर्शनं पापनाशनं।

    अघोर पापसंहारम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    सहस्रवेद पाटेषु ब्रह्मस्तापन मुच्यते।

    अनेकव्रत कोटीनाम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    अन्नदान सहस्रेषु सहस्रोप नयनं तधा।

    अनेक जन्मपापानि ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    बिल्वस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ।

    शिवलोकमवाप्नोति ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

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