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    कब और कैसे Rishi Markandeya को मिला अमरता का वरदान, महादेव से जुड़ा है नाता

    Updated: Wed, 26 Mar 2025 04:12 PM (IST)

    भारत की भूमि प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की भूमि रही है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में ऐसे कई ऋषि-मुनियों का वर्णन मिलता है जिनके समक्ष देवी-देवता भी नतमस्तक हो जाते थे। आज हम आपको एक ऐसे ही ऋषि की कथा बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी भक्ति से विधि के विधान को ही बदलकर रख दिया। चलिए पढ़ते हैं पूरी कहानी।

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    Rishi Markandeya katha पढ़िए ऋषि मार्कण्डेय की कथा। (Picture Credit: AI Generated)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हम बात कर रहे हैं चिरंजीवी मुनि मार्कण्डेय (Rishi Markandeya katha) की, जिनके जन्म से ही यह निश्चित था कि वह केवल 16 साल की आयु तक ही जीवित रहेंगे। लेकिन उन्होंने अपनी श्रद्धा-भक्ति से विधि के इस विधान को बदल दिया और अमरता का वरदान प्राप्त किया। चलिए जानते हैं उसी जुड़ी यह रोचक कथा।

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    भगवान शिव ने दिया वरदान

    पद्म पुराण के उत्तरखंड में वर्णित कथा के अनुसार, मृकण्डु मुनि के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी मरुदमति के साथ शिव जी की घोर तपस्या की। इससे महादेव प्रसन्न हुए और उन्हें पुत्र का वरदान भी दिया, लेकिन इससे पहले शिव जी ने मृकण्डु से यह प्रश्न किया कि ‘तुम्हें दीर्घ आयु वाला लेकिन गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर अल्प आयु वाला लेकिन गुणवान पुत्र चाहिए?’ तब मृकण्डु ने शिव जी द्वारा दिए गए दूसरे विकल्प को चुना अर्थात गुणवान पुत्र की कामना की। इस पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा गया, जिसे सिर्फ 16 वर्ष की ही आयु प्राप्त थी।

    (Picture Credit: AI Generated)

    दक्षिण में की शिवलिंग की स्थापना

    मुनि मृकण्डु और उनकी पत्नी ने मार्कण्डेय को बड़े ही लाड़-प्यार से रखा, लेकिन जैसे ही मार्कण्डेय 16 साल के हुए, उनके माता पिता गहरे शोक में डूब गए। जब मार्कण्डेय ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बताई। तब वे अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर दक्षिण समुद्र के तट पर चले गए और वहां एक शिवलिंग स्थापित कर आराधना करने लगे।

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    (Picture Credit: AI Generated)

    काल के आने पर क्या हुआ

    एक दिन जब वह शिव जी की उपासना कर रहे थे, तभी मृत्यु के देवता, यम उनके प्राण हरने वहां आ पहुंचे, लेकिन तब मार्कंडेय की आराधना अधूरी थी, इसलिए वह शिवलिंग से चिपके रहे। यह देखकर यम उन्हें अपना साथ ले जाने के लिए यमपाश डाल कर खींचने लगे, लेकिन इसी दौरान शिवलिंग से महादेव प्रकट हुए और यमराज को वापिस लौटा दिया। इसी के साथ मार्कण्डेय की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें सदा के लिए काल-मुक्त कर दिया अर्थात अमरता का वरदान दिया। इसलिए शिव जी को महाकाल भी कहा जाता है।

    की ये रचनाएं

    शिवजी की आराधना के लिए ऋषि मार्कण्डेय ने ‘महामृत्युंजय’ मंत्र की रचना थी। इस मंत्र को लेकर यह कहा जाता है कि इस मंत्र के जप से साधक के अकाल मृत्यु का खतरा भी टल जाता है। इसी के साथ ऋषि मार्कण्डेय ने मार्कण्डेय पुराण की रचना की थी, जिसमें दुर्गा सप्तशती भी सम्मिलित है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।