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    Brihaspati Chalisa: गुरुवार के दिन पूजा के समय कर लें इस चालीसा का पाठ, जीवन की हर परेशानी हो जाएगी दूर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 22 May 2025 12:09 AM (IST)

    जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है। गुरुवार के दिन तुलसी माता की पूजा करने से जग के नाथ भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। अपनी कृपा साधक पर बरसाते हैं। उनकी कृपा से घर में सुख शांति और खुशहाली आती है। साथ ही मनचाही मुराद पूरी होती है।

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    Brihaspati Chalisa: बृहस्पति देव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही गुरुवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में बृहस्पति देव की पूजा एवं भक्ति की जाती है। विवाहित महिलाएं और कुंवारी लड़कियां गुरुवार के दिन व्रत रखती हैं।

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    इस व्रत के पुण्य-प्रताप से व्रती को सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ज्योतिष भी मनचाहा वर पाने के लिए गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी लक्ष्मी नारायण जी की कृपा पाना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन भक्ति भाव से भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय बृहस्पति चालीसा का पाठ और तुलसी आरती करें।

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    बृहस्पति चालीसा

    दोहा

    प्रनवउँ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।

    श्री गणेश शारद सहित, बसों हृदय में आन॥

    अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरु स्वामी सुजान।

    दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान॥

    चौपाई

    जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर॥

    यंत्र-मंत्र विज्ञान के ज्ञाता।भारत भू के प्रेम प्रेनता॥

    जब जब होई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी॥

    सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥

    उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धर्म की रक्षा॥

    अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥

    मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तान चंद पिता कर नामा॥

    शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाए॥

    रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख॥

    जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥

    जन्म वृतन्त सुनायए नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना॥

    नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥

    ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरूप गुरु गोरवान्वित॥

    एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥

    चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी॥

    पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥

    अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का॥

    युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥

    सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी॥

    अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥

    त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आए नारायण॥

    धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥

    सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा॥

    ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥

    एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता॥

    प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥

    आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर॥

    रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥

    अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया॥

    वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥

    पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे॥

    चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥

    चिन्तन करत मंत्र जब गाएं। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलाएं॥

    मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भूत-पिशाचा॥

    प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन॥

    निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥

    पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा॥

    अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥

    श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा॥

    जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥

    आरती

    ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

    भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करे॥

    जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

    सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

    तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥

    तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।

    पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥

    तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

    किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥

    दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

    अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥

    विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

    श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥

    तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

    तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥

    जगदीश्वर जी की आरती जो कोई नर गावे।

    कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।