Rambha Teej 2025: 11 दैवीय अप्सराओं में से एक थी रंभा, फिर ऋषि विश्वामित्र ने क्यों दिया था श्राप
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को रंभा तीज मनाई जाती है। इस दिन अप्सराओं की पूजा से सौभाग्य और वैवाहिक सुख मिलता है। रंभा 11 दैवीय अप्सराओं में से एक थीं। रंभा ने देव और दानव दोनों को नहीं चुना और धर्म के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्येष्ठ मास की शुक्ल तृतीया तिथि को रंभा तीज (Rambha Teej 2025) का पर्व मनाया जाता है, जो इस साल 29 मई 2025 को है। इस दिन अप्सराओं की पूजा करने से सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक सुख मिलता है। रंभा को 11 दैवीय अप्सराओं में गिना जाता है, जो समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं।
पुराणों के अनुसार, वह अप्सराओं की रानी थीं। अपने अद्वितीय सौंदर्य, मधुर वाणी, नृत्य-कला और मोहक स्वभाव की वजह से रंभा जहां उपस्थिति होती थीं, वहां सौंदर्य और आकर्षण अपने आप ही खिंचा चला आता था।
देव और दानव, दोनों को नहीं चुना
रंभा को देखते ही देवता और दानव, दोनों ही उन्हें पाने के लिए उत्सुक हो गए। देवता उन्हें स्वर्ग की शोभा बनाना चाहते थे, तो दानव रंभा के सौंदर्य से मोहित होकर उन्हें अपने साथ रखना चाहते थे। परंतु रंभा ने दोनों ही पक्षों को नहीं चुना।
उन्होंने कहा कि वे किसी की संपत्ति नहीं हैं। वह केवल धर्म, सत्य और आत्मसम्मान से जुड़े रास्ते पर चलेंगी। उनका यह निर्णय तीनों लोकों में उनके चरित्र और नारी-स्वाभिमान की मिसाल बन गया। उनकी यही भावना उन्हें अन्य अप्सराओं से अलग बनाती है।
फिर विश्वामित्र ने क्यों दिया श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महर्षि विश्वामित्र कठोर तपस्या में लीन थे। उनके तप को देखकर देवराज इंद्र को अपना सिंहासन डोलता दिखने लगा। महर्षि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए उन्होंने अपनी सबसे सुंदर, कामुक, यौवन से भरी अप्सरा को भेजा।
रंभा अपनी मधुर आवाज, अद्भुत नृत्य कौशल और कामुक अदाओं से विश्वामित्र का ध्यान तपस्या से हटाने की कोशिश करने लगी। उन्होंने अपने यत्न से ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग भी कर दी। इस बात से क्रोधित होकर ऋषि ने रंभा को एक हजार साल तक पत्थर की मूर्ति बनने का श्राप दे दिया।
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श्राप से मुक्ति के लिए की तपस्या
इसके बाद स्वर्ग की सबसे खूबसूरत अप्सरा रंभा पत्थर की शिला में बदल गई। हालांकि, रंभा को अपनी गलती का भान हुआ और उसने शिला रूप में रहते हुए भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना शुरू कर दी।
कई सालों की आराधना करने के बाद शिव-पार्वती रंभा के तप से प्रसन्न हुए और उसे श्राप से मुक्त कर दिया। इस तरह रंभा का शरीर फिर से पहले जैसा हो गया।
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