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    Ramayana Story: इस श्राप की वजह से बिना अनुमति स्त्री को स्पर्श नहीं कर सकता था रावण, जानें पौराणिक कथाएं

    Updated: Thu, 27 Mar 2025 02:14 PM (IST)

    वेदवती और रंभा (Vedavati And Rambha Cursed) के साथ किया गया दुराचार रावण के अंत का कारण बना। इन श्राप के कारण ही रावण अपनी अपार शक्ति के बावजूद माता सीता का स्पर्श करने में असमर्थ था। इससे यह भी पता चलता है कि स्त्रियों का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है और उनके प्रति किया गया दुर्व्यवहार किस प्रकार विनाशकारी परिणाम ला सकता है।

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    Ramayana Story: रावण के विनाश का कारण बनें ये श्राप। (IMG Caption -Freepic)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रामायण एक ऐसा महाकाव्य है, जिससे व्यक्ति धर्म, न्याय और नैतिकता की सीख मिलती है। इस ग्रंथ में भगवान राम की वीरता और माता सीता की पवित्रता की गाथा तो वर्णित है ही, साथ ही रावण के पाप कर्मों और उनके बुरे परिणामों का भी उल्लेख मिलता है। शिव पुराण के अनुसार, एक बार रावण, अपनी विद्वता और शक्ति के घमंड में आकर महा तपस्विनी स्त्री वेदवती का अपमान कर बैठा। वे भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। अपने सतीत्व और तपस्या के अपमान से क्रोधित होकर वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि ''एक स्त्री के कारण ही उसकी मृत्यु होगी''। इतना कहने के बाद वेदवती (Vedavati Cursed) ने अग्नि में प्रवेश कर लिया था।

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    इस श्राप के कारण रावण के मन में भी स्त्रियों के प्रति एक भय उत्पन्न हो गया था, खासकर किसी तपस्विनी या पवित्र स्त्री को अपमानित करने के परिणाम से वह पूरी तरह अवगत था। यही वजह थी कि वह मां सीता को कभी स्पर्श नहीं कर पाया था।

    नलकुबेर ने दिया था श्राप

    वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में वर्णित है कि ''एक बार रावण ने अपनी पुत्रवधू रंभा (Rambha Cursed) के साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की। रंभा, कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी थीं। रंभा ने रावण को इस बात से अवगत कराया था, लेकिन रावण ने रंभा की बात नहीं सुनी और उसके साथ दुराचार किया। जब नलकुबेर को इस घटना के बारे में पता चला, तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने रावण को श्राप दिया कि यदि रावण ने किसी भी स्त्री को बलपूर्वक स्पर्श करने का प्रयास किया, तो उसी क्षण उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह श्राप रावण के लिए एक ऐसा बंधन बन गया, जिसके कारण वह कभी माता सीता का स्पर्श नहीं कर पाया था।

    जब रावण ने मां सीता का हरण किया और उन्हें लंका ले गया, तो उसने उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा। उसने अनेक प्रयास किए, लेकिन नलकुबेर के श्राप के भय से वह माता सीता का शारीरिक स्पर्श करने का साहस नहीं जुटा पाया, क्योंकि वह अच्छे से जानता था कि यदि उसने ऐसा किया, तो उसका अंत तय है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।