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    Pradosh Vrat 2025: इस व्रत कथा के बिना अधूरा है प्रदोष व्रत, नोट कीजिए कथा पढ़ने का समय

    Pradosh Vrat 2025 भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं। वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत 25 अप्रैल को शुक्रवार के दिन पड़ रहा है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव जी की पूजा करने और व्रत की कथा पढ़ने से मनोवांक्षित फल मिलते हैं।

    By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Fri, 25 Apr 2025 06:00 AM (IST)
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    प्रदोष काल में भगवान शिव जी की पूजा करने और व्रत की कथा पढ़नी चाहिए।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Pradosh Vrat 2025: महीने में दो बार पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है। वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत 25 अप्रैल को शुक्रवार के दिन पड़ रहा है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव जी की पूजा करने और व्रत की कथा पढ़ने से मनोवांक्षित फल मिलते हैं।

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    प्रदोष काल का समय शाम 6:58 मिनट से रात 9:13 मिनट तक रहेगा। इस समय पर भोलेनाथ का विधि-विधान से पूजन करने से सुख-समृद्धि मिलेगी। इस समय में पढ़ें ये पौराणिक कथा, जिसके बिना अधूरा माना जाता है प्रदोष का व्रत…

    यह है पौराणिक कथा

    प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी था। उसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगने लगी। एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई। वह अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था।

    शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर हमला कर उसके पिता को बंदी बना लिया था। युद्ध में वह भी घायल होकर कराह रहा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई। वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र की तरह उसका भी ध्यान रखने लगी।

    एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी। इसके बाद वह घर जाकर प्रदोष व्रत करने लगी।

    कथा के बाद बदलने लगी जिंदगी 

    कुछ समय बाद दोनों बालक वन में घूमने गए। वहां से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया और राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्या अंशुमती को क्रीड़ा करते हुए देखा, तो उससे बात करने लगा। राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी।

    तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार धर्मगुप्त हो। अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते हैं, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?

    राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ वहां राज्य करने लगा।

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    वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। इसके बाद पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुख और दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

    अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा। तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया। उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा और महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे।

    कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।