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    Pradosh Vrat 2025: शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम है प्रदोष व्रत, यहां पढ़ें पूजा विधि और आरती

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 08:53 AM (IST)

    प्रदोष व्रत को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व दिया जाता है। यह व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि पर किया जाता है और इस दिन पर भगवान शिव की विशेष पूजा की ...और पढ़ें

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    Budh Pradosh Vrat 2025 (AI Generated Image)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। बुध प्रदोष का व्रत (Pradosh Vrat 2025) को सुख-समृद्धि के साथ-साथ मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। इस दिन विशेष रूप से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है और बेलपत्र अर्पित किया जाता है। व्रती इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान शिव की कथा सुनते हैं। साथ ही इस दिन पर दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है।

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    प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त (Pradosh Vrat Puja Muhurat)

    त्रयोदशी तिथि का आरंभ 16 दिसंबर को रात 11 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है। वहीं इस तिथि का समापन 18 दिसंबर को देर रात 2 बजकर 32 मिनट पर होगा। ऐसे में आज यानी बुधवार, 17 दिसंबर को बुध प्रदोष व्रत किया जाएगा। इस दिन पर शिव जी की पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा -

    प्रदोष पूजा मुहूर्त - शाम 5 बजकर 27 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक

    Pradosh Vrat AI

    (AI Generated Image)

    बुध प्रदोष व्रत की पूजा विधि -

    • सबसे पहले व्रत करने वाले साधक पूजा स्थल की सफाई करें।
    • एक छोटी थाली रखें व उसमें जल, दूध, घी, बेलपत्र, पुष्प, अक्षत, दीपक और धूप आदि शामिल करें।
    • शिवलिंग पर जल, दूध, घी और दही से अभिषेक करें, बेलपत्र और फूल चढ़ाएं।
    • दीपक जलाएं और शिव जी की आरती करें।
    • शिव जी से जीवन में सफलता और सुख-शांति की प्रार्थना करें।
    • शाम को शुभ मुहूर्त में पुनः शिव जी की पूजा करें और अपने व्रत का पारण करें
    Pradosh Vrat 2024 i
    (Picture Credit: Freepik)

    शिव जी की आरती

    ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
    ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।

    हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।

    त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।

    सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।

    जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

    प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।

    भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

    शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

    नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
    ओम जय शिव ओंकारा॥

    त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

    कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

    ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी
    ओम जय शिव ओंकारा॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।