Pitra Dosh: पितृ दोष की वजह से व्यक्ति को झेलनी पड़ती है कई परेशानी, जानिए मुक्ति के उपाय
हिंदू धर्म में पितरों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। माना जाता है कि व्यक्ति पर पितरों का आशीर्वाद बना रहे तो उसके जीवन में सुख-समृद्धि भी बनी रहती है। लेकिन अगर पितृ नाराज हो जाएं तो इससे जीवन की समस्याएं बढ़ भी सकती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि पितरों के नाराज होने के आखिर क्या कारण हो सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। माना जाता है कि व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष (Pitra Dosh) लगने पर उसे तरह-तरह की पीड़ा झेलनी पड़ती है। माना जाता है कि पितृ दोष पितरों के नाराज होने पर लगता है। इसके अलावा भी पितृ दोष लगने के कई कारण हो सकते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि पितृ दोष लगने पर व्यक्ति को कौन-कौन से कष्ट झेलने पड़ते हैं और इनसे बचाव का उपाय क्या है।
पितृ दोष के कारण
जब किसी व्यक्ति का सही विधि से अंतिम संस्कार या फिर पिंडदान, तर्पण, और श्राद्ध आदि न किया जाए , तो ऐसे में उस व्यक्ति के परिजनों को पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष का असर कई पीढ़ियों तक रहता है। इसी के साथ पीपल, नीम, या बरगद जैसे पेड़ को काटने, जाने-अनजाने में सांप की हत्या करने से भी व्यक्ति को पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है।
होती हैं ये समस्याएं
- पितृ दोष होने पर व्यक्ति को संतान की प्राप्ति में काफी बाधा आती है।
- परिवार में लड़ाई-झगड़ा बढ़ने लगते हैं।
- कोई-न-कोई व्यक्ति हमेशा बीमार बना रहता है।
- कारोबार में लगातार घाटा होने लगता है, आर्थिक परेशानी होती है।
- जातक के विवाह में देरी होती है।
- दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
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मुक्ति के उपाय
पितृ दोष से मुक्ति के लिए साधक को सही विधि से तर्पण, श्राद्ध और दान जैसे कर्म करने चाहिए। इससे पितरों की कृपा दृष्टि भी आपके ऊपर बनी रहती है। इसी के साथ जल में काले तिल मिलाकर दक्षिण दिशा में अर्घ्य दें। पीपल के पेड़ में जल चढ़ाए और सात बार परिक्रमा करें। इस सभी उपयों को करने से आपको पितृ दोष से राहत मिल सकती है।
इन मंत्रों का करें जप -
- ॐ श्री पितराय नमः
- ॐ श्री पितृदेवाय नमः
- ॐ श्री पितृभ्यः नमः
- ॐ श्री सर्व पितृ देवताभ्यो नमो नमः
- ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः पितृगणाय च नमः
- ॐ श्राध्दाय स्वधा नमः
- ॐ नमः शिवाय
- ॐ श्रीं सर्व पितृ दोष निवारणाय क्लेशं हं हं सुख शांतिम् देहि फट् स्वाहा
- ॐ पितृदेवताभ्यो नमः
- ॐ पितृ गणाय विद्महे जगत धारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्
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