परशुराम जन्मोत्सव… लक्ष्मण को अपने गुस्से से डरा रहे थे परशुराम, जानिए फिर कैसे हुआ क्रोध शांत
Parshuram Jayanti 2025 परशुराम ने क्षत्रिय वंश के प्रति अपने क्रोध और अहंकार का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि वह विश्व में क्षत्रिय कुल के द्रोही के रूप में विख्यात हैं। उनके गुस्से पर लक्ष्मण जी ने जब प्रतिउत्तर दिए तो वह और भी क्रोधित हो गए। तब विनयपूर्वक भगवान राम ने ऐसी बातें कहीं कि परशुराम का क्रोध शांत हो गया।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Parshuram Jayanti 2025: भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन है। उनकी शूरवीरता के किस्से तो आपने भी सुने होंगे। अति क्रोधी स्वभाव के परशुराम को जब शिवजी के दिए धनुष के टूटने का पता चला, तो तुरंत ही जनकपुरी पहुंच गए।
उस समय वहां माता सीता का स्वयंवर चल रहा था। गुस्से में भरे परशुराम को देखकर सभा में सन्नाटा छा गया। उनके गुरु भगवान शिव का धनुष दो टुकड़ों में पड़ा था। यह देखकर वह बहुत क्रोधित हो गए, उन्होंने कहा जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह समाज से अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजाओं को जान से मार दूंगा।
यह सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराते हुए जबाव देते हैं…
हे गोसाईं! लड़कपन में हमने बहुत-सी धनुहियां तोड़ डालीं। मगर, आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है? यह सुनकर भृगुवंश की ध्वजा स्वरूप परशुराम कुपित होकर कहने लगे।
अरे राजपुत्र! काल के वश होने से तुझे बोलने में कुछ भी होश नहीं है। सारे संसार में विख्यात शिव का यह धनुष क्या धनुही के समान है?
इस पर लक्ष्मण ने हंसकर कहा - हे देव! सुनिए, हमारे जान में तो सभी धनुष एक से ही हैं। पुराने धनुष के तोड़ने में क्या हानि-लाभ! राम ने तो इसे नए के धोखे से देखा था।
फिर यह तो छूते ही टूट गया, इसमें रघुनाथ का भी कोई दोष नहीं है। मुनि! आप बिना ही कारण क्यों क्रोध करते हैं? परशुराम अपने फरसे की ओर देखकर बोले - अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना।
लक्ष्मण को यह कहते हुए डराते हैं परशुराम
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मैं तुझे बालक जानकर नहीं मारता हूं। अरे मूर्ख! क्या तू मुझे निरा मुनि ही जानता है? मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूं। क्षत्रियकुल का शत्रु तो विश्वभर में विख्यात हूं। अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और बहुत बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को देख!
राम की इस बात से गुस्सा हुआ शांत
नाथ करहु बालक पर छोहु। सूध दूधमुख करिअ न कोहू॥
जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तौ कि बराबरि करत अयाना।।
जौं लरिका कछु अचगरि करहीं। गुर पितु मातु मोद मन भरहीं॥
करिअ कृपा सिसु सेवक जानी। तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी॥
परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान राम बड़ी विनम्रता और सम्मान से बात करते हैं। वे परशुराम को बताते हैं कि हे नाथ ! बालक पर कृपा कीजिए। इस सीधे और दूधमुंहे बच्चे पर क्रोध न कीजिए। यदि यह आपका कुछ भी प्रभाव जानता, तो क्या यह बेसमझ आपकी बराबरी करता?
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भगवान राम ने उसने कहा कि बालक यदि कुछ चपलता भी करते हैं, तो गुरु, पिता और माता मन में आनंद से भर जाते हैं। अतः इसे छोटा बच्चा और सेवक जानकर कृपा कीजिए। आप तो समदर्शी, सुशील, धीर और ज्ञानी मुनि हैं।
संवाद का परिणाम
जब परशुराम को भगवान राम बताते हैं कि उन्होंने धनुष नहीं तोड़ा है, बल्कि वह स्वयं टूट गया है। वह भगवान विष्णु के अवतार हैं और उनके पास ज्ञान और शक्ति दोनों हैं। तब राम की शक्ति और ज्ञान को परशुराम पहचानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। वे युद्ध करने से इनकार कर देते हैं और राम के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।
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