पूजा के बाद क्यों जरूरी है आरती करना, पुराणों में भी बताया गया है इसका महत्व
Aarti Importance मंदिरों में आपने पूजा के बाद पुजारी या पंडित जी को आरती करते हुए देखा होगा। घर में भी आप आरती करते होंगे या देखते होंगे। मगर क्या आपको पता है कि आरती क्यों (why do we do aarti) की जाती है। यदि पूजा के मंत्र विधि-विधान नहीं भी आते हों तो यह आरती क्या चमत्कार कर सकती है। यदि नहीं तो यह लेख आपके लिए ही है…
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Aarti Importance: मंदिरों में सुबह भगवान की मंगला आरती से लेकर रात को विश्राम आरती की जाती है। हर पूजन-पाठ के बाद घरों में भी आरती की जाती है। मगर, इसकी जरूरत क्या है? क्यों की जाती है आरती (why do we do aarti)। यदि आरती नहीं की जाए, तो क्या होगा?
अगर आपके भी मन में ये सवाल उठ रहे हैं, तो आज हम आपको इसके जवाब देने जा रहे हैं। आरती के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है। आरती का अर्थ होता है संपूर्णता।
यह शब्द संस्कृत के आरात्रिक से लिया गया है, जिसका मतलब होता है अंधकार को हटाना। आरती की लौ से जब अंधकार हटता है, तो भगवान के दर्शन होते हैं। वहीं उसकी लौ आपके मन के अंधकार को भी मिटाती है।
पुराणों में बताया गया है महत्व
जब पूजन पाठ पूरा हो जाता है, तो उसकी समाप्ति से पहले आरती (Benefits of Aarti) की जाती है, जिसमें भगवान से प्रार्थना करते हुए दीपक को उनके आगे घुमाया जाता है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि जो धूप-आरती को देखता भी है, वह अपनी कई पीढ़ियों का उद्धार करता है।
इसी तरह से उत्तर स्कंद पुराण में भी आरती का महत्व बताया गया है। इसके अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को कोई मंत्र, पूजा की विधि नहीं आती हो और वह सिर्फ आरती कर ले, तो भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं।
कैसे करते हैं आरती
कपूर, घी या तेल का दीपक थाली में जलाकर भगवान की प्रतिमा या तस्वीर के आगे घुमाया जाता है। दीपक की लौ को पहले चार बार भगवान के चरणों में फिर दो बार नाभि के पास और एक बार मुख में घुमाया जाता है। इसके बाद सात बार चरणों से लेकर मुख तक दीपक को घुमाया जाता है।
जब शंख, घंटी, घंटे की ध्वनि के बीच आरती को घुमाया जा रहा होता है, तब सबसे पहले उसकी रोशनी में भगवान के चरण दिखते हैं। फिर उनकी नाभि के दर्शन होते हैं और अंत में उनका मुख दिखता है। इसके बाद भगवान के चरणों से लेकर मुख तक के पूरे दर्शन होते हैं।
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पूजा के विधान के बाद यही आरती है, तो अपने लौ के माध्यम से आपके मन और चित्त को भगवान से जोड़ती है। यही लौ आपके अंदर सकारात्मक विचारों को लाती है और पूजा-पाठ में जो भी गलतियां रह गई होती हैं, उन्हें पूर्ण कर देती है। आरती नहीं करने से पूजा-पाठ या विधान पूरा नहीं माना जाता है।
कैसे लेनी चाहिए आरती
आरती से करने का मतलब यही है कि अब पूजन समाप्त हो गया है और हम भगवान से कुशलता की कामना करने वाले हैं। इसके बाद दीपक की लौ को दोनों हाथों से लेने के बाद सिर में घुमाएं और दूसरी बार आरती लेकर माथे से लगाएं। यह लौ आपके अरिष्टों को खत्म करती है और मन को शांत करती है।
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