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    Onam 2025: कब मनाया जाएगा ओणम? यहां जानें इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 11:04 AM (IST)

    ओणम एक मलयाली त्यौहार है जो दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे केरल आदि में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मलयालम सौर कैलेंडर पर आधारित होता है जो 10 दिनों तक चलता है। इस बार 26 अगस्त से इस पर्व की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि ओणम (Onam 2025 Date) कब मनाया जाएगा।

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    Onam 2025 Date ओणम से जुड़ी खास बातें।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ओणम, दक्षिण भारत में मनाया जाना वाला एक बेहद ही खास त्योहार है, जो 10 दिवसीय पर्व का सबसे प्रमुख दिन है। इस पर्व को राजा महाबली से जोड़कर देखा जाता है। मलयालमी कैलेंडर के अनुसार, चिंगम महीने में जिस दिन थिरुवोणम नक्षत्र प्रबल होता है, उसी दिन ओणम मनाया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें।

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    कब मनाया जाएगा ओणम (Onam 2025 Date)

    मलयालम कैलेंडर के अनुसार, थिरुवोणम नक्षत्र का प्रारंभ 4 सितंबर को रात 11 बजकर 44 मिनट हो रहा है। वहीं इस नक्षत्र का समापन 5 सितंबर को रात 11 बजकर 38 मिनट पर होगा। ऐसे में ओणम शुक्रवार 5 सितंबर से मनाया जाएगा, जिसे थिरुवोनम भी कहा जाता है।

    मनाए जाते हैं ये दिन

    10 दिनों तक चलने वाले ओणम की शुरुआत अथम से होती है। यह अथम नक्षत्र के प्रबल होने पर मनाया जाता है। इसके बाद क्रमशः चिथिरा, चोडी, विशाखम, अनिजम, थ्रिकेटा, मूलम, पूरादम, उथ्रादम और थिरुवोनम (ओणम)  मनाए जाते हैं।

    क्यों मनाया जाता है यह पर्व (Onam 2025 significance)

    मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लेने और महान सम्राट महाबली (King Mahabali) के पाताल लोक से धरती पर आगमन के उपलक्ष्य में यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व से जुड़ी कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लिया तो उन्होंने महाबली को पाताल लोक का राजा बना दिया।

    साथ ही उन्हें वर्ष में एक बार पृथ्वी पर आकर अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति मिली। माना जाता है कि ओणम के दिन राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने आते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

    इस तरह मनाया जाता है यह पर्व 

    ओणम के मौके पर लोग अपने घरों को फूलों से सजाते हैं और रंगोली बनाते हैं। इसके साथ ही दीपक भी जलाए जाते हैं। इस दिन पर पारंपरिक कपड़े पहने जाते हैं और पारम्परिक भोजन केले के पत्तों पर परोसा जाता है।

    सभी लोग मिलकर लोक नृत्य, संगीत और पूजा-पाठ में भाग लेते हैं और एक-दूसरे को इस पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। इस दिन पर कई तरह की सांस्कृतिक गतिविधियां और पारंपरिक खेल जैसे वल्लमकली (नौका दौड़), पुलिक्कली (बाघ नृत्य) आदि का भी आयोजन किया जाता है। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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