Nikumbala Devi: क्या सच में माता निकुंभला की साधना करने वाला व्यक्ति हो जाता है अमर?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में मेघनाथ (Maa Nikumbhala Devi) सबसे बड़ा वैष्णव या तपस्वी था। मेघनाथ ने सफलपूर्वक वैष्णव यज्ञ किया था। इसके अलावा केवल दानवीर कर्ण ही ऐसा करने में सफल हो सके थे। वहीं पाशुपतास्त्र अर्जुन और मेघनाथ के पास ही था। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मेघनाथ को पाशुपतास्त्र प्रदान किया था।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Nikumbala Devi: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और लंका नरेश रावण त्रेता युग के समकालीन थे। दशानन रावण के पिता ऋषि विश्रवा थे। वहीं, रावण की माता कैकसी थीं। ऋषि विश्रवा के पिता महर्षि पुलस्त्य थे, जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। अपने पिता ऋषि विश्रवा की तरह दशानन रावण ज्ञानी एवं पंडित थे। तत्कालीन समय में दशानन रावण सबसे बड़े ज्योतिष भी थे। सर्वप्रथम दशानन रावण ब्रह्मा जी के भक्त थे। कालांतर में अमरता का वरदान प्राप्त करने हेतु लंका नरेश रावण ने देवों के देव महादेव की कठिन तपस्या की।
कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को अमरता का वरदान न देकर मायावी विद्या प्रदान की थी। इस वरदान को पाकर रावण अजेय हो गया। हालांकि, बाद में रावण ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग भी किया। अपनी शक्ति के दम पर रावण ने सभी ग्रहों को बंदी बनाकर मेघनाथ की कुंडली के शुभ भाव में रख दिया। उस समय शनिदेव ने रावण के ज्योतिषीय गणना को असफल कर दिया। इसके चलते मेघनाथ अमर नहीं हो सका।
मेघनाथ ने भी भगवान शिव की कठिन तपस्या कर अमरता का प्राप्त करना चाहा था। भगवान शिव ने मेघनाथ को पाशुपतास्त्र वरदान में दिया। इस अस्त्र के माध्यम से मेघनाथ ने तीनों लोकों पर विजय हासिल की थी। साथ ही स्वर्ग के सभी देवताओं को बंदी बना लिया था। उस समय ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को ऐसा न करने की सलाह दी थी। अपने पिता की तरह मेघनाथ ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान देने के शर्त पर इंद्र को छोड़ने की बात की।
ऐसा भी कहा जाता है कि इस युद्ध में भगवान कार्तिकेय ने देवताओं का नेतृत्व किया था, लेकिन पाशुपतास्त्र और ब्रह्मास्त्र के सम्मान में मेघनाथ को विजय हासिल करने दी थी। मेघनाथ के हठ को देख ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को अमर होने का सूत्र बताया। इस समय ब्रह्मा जी ने रावण की कुल देवी माता निकुंभला (Maa Nikumbhala Devi) की साधना करने की सलाह दी। आइए, इस पौराणिक प्रसंग के बारे में जानते हैं-
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माता निकुंभला कौन हैं?
दशानन रावण द्वारा माता सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम ने अपने सेवक हनुमान जी को पता लगाने के लिए लंका भेजा। इस प्रयास में हनुमान जी सफल रहे थे। उस समय हनुमान जी लंका नरेश रावण को माता सीता को सम्मान पूर्वक लौटाने की बात की थी। हालांकि, हठी रावण ने हनुमान जी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद अंगद, विभीषण और रावण का भाई कुंभकर्ण ने भी माता जानकी को लौटाने की सलाह दी थी। दशानन रावण नहीं मानें। इसके फलस्वरूप वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने लंका नरेश रावण को युद्ध के लिए ललकारा।
इस युद्ध में एक के बाद एक रावण पक्ष के योद्धा मारे गये। यह देख रावण घबरा गये और अपने पुत्र मेघनाथ को युद्ध के लिए भेजा। मेघनाथ ने पिता की आज्ञा का पालन कर लक्ष्मण जी से युद्ध किया। इसी समय मेघनाथ ने अमरता पाने के लिए माता निकुंभला के निमित्त तंत्र यज्ञ किया। इसकी जानकारी विभीषण को थी। उन्होंने तत्काल से हनुमान जी को मेघनाथ के यज्ञ को भंग करने की सलाह दी।
कहते हैं कि वानरों ने मेघनाथ के यज्ञ को भंग कर दिया था। इसके चलते मेघनाथ को मायावी रथ प्राप्त नहीं हो सका था। इस रथ पर मेघनाथ विराजमान या रहने पर कोई योद्धा इंद्रजीत का वध नहीं कर सकता है। माता निकुंभला (Who is Maa nikumbala) की भक्ति कर रावण को सिद्धि प्राप्ति हुई थी।
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