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    Shardiya Navratri के तीसरे दिन दुर्लभ 'इंद्र योग' समेत बन रहे हैं कई मंगलकारी संयोग, बरसेगी देवी मां की कृपा

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 09:00 PM (IST)

    मां चंद्रघंटा (navratri day 3) दस भुजाधारी हैं। देवी मां चंद्रघंटा के हस्त अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हैं। इसके साथ ही मां चंद्रघंटा अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण कर रखा है। देवी मां चंद्रघंटा की सवारी सिंह है। देवी मां की पूजा करने से जीवन की हर परेशानी दूर होती है।

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    Shardiya Navratri 2025: देवी मां चंद्रघंटा की पूजा कैसे करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, बुधवार 24 सितंबर को शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन है। इस शुभ अवसर पर मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। साथ ही मनचाहा वरदान पाने के लिए व्रत भी रखा जाएगा। देवी मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।

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    ज्योतिषियों की मानें तो शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन (Navratri 2025 Day 3) दुर्लभ इंद्र योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक को दोगुना फल मिलेगा। आइए, शुभ मुहूर्त और योग के बारे में जानते हैं-

    शारदीय नवरात्र शुभ मुहूर्त

    शारदीय नवरात्र की तृतीया (navratri day 3,) तिथि 25 सितंबर को सुबह 07 बजकर 06 मिनट तक है। साधक अपनी सुविधा अनुसार समय पर मां चंद्रघंटा की पूजा कर सकते हैं। इसके बाद अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार दान करें। आप अन्न-धन और वस्त्र का दान कर सकते हैं।

    इंद्र योग

    ज्योतिषियों की मानें तो शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन (Indra yog navratri day 3) दुर्लभ इंद्र योग का निर्माण हो रहा है। इंद्र योग का संयोग रात 09 बजकर 03 मिनट तक है। इसके साथ ही रवि योग का भी निर्माण हो रहा है। रवि योग का निर्माण शाम 04 बजकर 16 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 10 मिनट तक है। इन योग में देवी मां चंद्रघंटा की पूजा करने से आरोग्य जीवन का वरदान मिलेगा।

    पूजा विधि (Maa Chandraghanta Puja Vidhi)

    शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन सूर्योदय से पहले उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें। नित्य कामों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आचमन करें और लाल और पीले रंग के कपड़े पहनें। इसके बाद व्रत संकल्प लेकर सूर्य देव को जल अर्पित करें।

    तदोपरांत, पंचोपचार कर विधि-विधान से मां चंद्रघंटा की पूजा करें। पूजा के समय चालीसा और स्तोत्र का पाठ और मंत्र का जप करें। पूजा का समापन आरती से करें। दिन भर उपवास रखें। वहीं, शाम में आरती के बाद फलाहार करें। साधक दिन में एक बार फल और जल ग्रहण कर सकते हैं। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।