Narmada Jayanti 2025: नर्मदा जयंती पर करें इस स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सभी दुख एवं कष्ट
धार्मिक मत है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की (Rath Saptami 2025) सप्तमी के दिन भानु सप्तमी मनाई जाती है। ज्योतिषियों की मानें तो रथ सप्तमी पर शुभ और सर्व ...और पढ़ें

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 04 फरवरी को नर्मदा और रथ सप्तमी है। इस दिन नर्मदा और गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान कर सूर्य देव और मां नमर्दा की पूजा की जाती है। इस शुभ अवसर पर अमरकंटक में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। धार्मिक मत है कि नर्मदा जयंती के दिन गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करने से समस्त पाप धुल जाते हैं।
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ज्योतिष भी करियर को नया आयाम देने के लिए सूर्य देव की पूजा करने की सलाह देते हैं। इस शुभ अवसर पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव की पूजा-उपासना करने से सुखों में वृद्धि होती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुखों से निजात पाना चाहते हैं, तो नर्मदा जयंती पर स्नान-ध्यान कर विधि विधान से भगवान शिव और मां नर्मदा की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय स स्तोत्र का पाठ करें।
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॥ श्री नर्मदा अष्टकम ॥
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम ॥
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥
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