Nag Panchami 2025: नाग पंचमी पर जरूर करें इस पावन कथा का पाठ, होंगे चमत्कारी लाभ
हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी (Nag Panchami Katha) मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 29 जुलाई 2025 यानी आज के दिन मनाई जा रही है। इस दिन नाग देवता की पूजा और व्रत का बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि नागों की पूजा करने से कालसर्प दोष कम होता है और सुख-समृद्धि आती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पावन पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल नाग पंचमी 29 जुलाई, 2025 यानी आज के दिन मनाई जा रही है। यह दिन नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन नागों की पूजा करने से कुंडली से कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है। इसके साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
वहीं, इस दिन (Nag Panchami Puja Vidhi) कई भक्त व्रत रखते हैं। ऐसे में जो साधक इस दिन कठिन व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें इस तिथि की कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। कहते हैं कि इस कथा को सुनने या पढ़ने से चमत्कारी लाभ मिलते हैं, तो आइए पढ़ते हैं।
नाग पंचमी की कथा (Nag Panchami 2025 Katha Ka Path)
एक समय की बात है द्वापर युग में राजा परीक्षित एक बार आखेट के लिए दल-बल केए साथ वन गये थे। शिकार के दौरान राजा परीक्षित को प्यास लगी। उस समय राजा परीक्षित पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। भटकते-भटकते राजा परीक्षित एक ऋषि के आश्रम पर जा पहुंचे। इस आश्रम में ऋषि शमीक रहते थे। राजा परीक्षित ने कई बार ऋषि शमीक को पानी देने का आग्रह किया। हालांकि, ध्यान मग्न ऋषि शमीक ने राजा परीक्षित को जल प्रदान नहीं किया। उस समय राजा परीक्षित ने बाण पर मृत सांप रख ऋषि शमीक पर चला दिया। सांप ऋषि शमीक के गले में जा लपटा। राजा परीक्षित वहां से लौट गये। ऋषि शमीक ध्यान में मग्न रहे। संध्याकाल में ऋषि शमीक के पुत्र ने देखा कि उनके पिता के गले में मृत सांप लपेटा हुआ है।
तब ऋषि शमीक के पुत्र ने राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया। कालांतर में श्राप देने के सातवें दिन ही राजा परीक्षित की सर्पदंश से मृत्यु हो गई। यह बात जब उनके पुत्र जनमेजय को हुई, तो जनमेजय ने विशाल नागदाह यज्ञ कराया। इस यज्ञ के चलते सांपों का नाश होने लगा। तब ऋषि आस्तिक मुनि ने सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग को दूध अर्पित कर जीवनदान दिया। साथ ही जनमेजय के नागदाह यज्ञ को भी रुकवाया। इस दिन से ही नाग पंचमी पर्व मनाने की शुरुआत हुई।
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