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    Nag Panchami 2025: पुराण से पर्यावरण तक नाग पंचमी का खास महत्व, इसमें छिपा सर्पों से जुड़ा रहस्य

    By akhilesh tiwari Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Sat, 26 Jul 2025 09:28 PM (IST)

    Nag Panchami 2025 सावन मास की कृष्ण पक्ष पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाएगी। इस बार 29 जुलाई को नाग पंचमी का योग बन रहा है। कई शुभ योग भी हैं। मान्यता है कि नाग देवता की पूजा से कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। लेकिन यह त्योहार सिर्फ यहीं तक नहीं सीमित है। इसका वेदों से लेकर पुराणों तक उल्लेख है।

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    Nag Panchami 2025: नाग पंचमी त्योहार का खास महत्व होता है।

    आखिलेश तिवारी, जागरण, कानपुर। Nag Panchami 2025: इस धरती पर संभवतः ही भारत जितनी कोई समृद्ध संस्कृति होगी, जिसने अपने गर्भ में इतनी विविधताएं छिपा रखी हैं। यहां के समस्त व्रत, पर्वों और मान्यताओं में एक वैज्ञानिकता है। नाग पंचमी का पर्व भी ऐसा ही है। इसका संबंध पुराण से पर्यावरण तक है।

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    नाग पंचमी श्रवण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है किंतु देश भेद के कारण कतिपय स्थानों पर कृष्णपक्ष में भी होता है। इसमें परविद्धा पंचमी का ग्रहण किया जाता है। नागों से संबंधित इस व्रत और पर्व का ऐतिहासिक संदर्भ भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। इसके बाद अन्य वेदों और पुराणों में भी वर्णन किया गया है। इस तरह, यह भारतीय संस्कृति के सबसे पुराने व्रत-पर्वों में से एक है। पढ़िए, सीएसजेएमयू के प्रति कुलपति व दीनदयाल शोध केंद्र के निदेशक प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी का आलेख...

    Prof Sudhir Kumar

    प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी।

    घर में सर्पों का भय नहीं

    नाग पंचमी का त्योहार न केवल नागों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह प्रकृति और धर्म से जुड़े गहरे महत्व को भी दर्शाता है। इस दिन सांपों को दूध से स्नान और पूजन कर अपने गृह के द्वार में दोनों ओर गोबर अथवा कच्चे सूत की रस्सी के सर्प बनाकर उनका दधि, दूर्वा, कुशा, गन्ध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुआ आदि से पूजा करने का विधान है। इस व्रत को करने से घर में सर्पों का भय नहीं होता है।

    वेद की तरह नागों का अस्तित्व प्राचीन

    नाग हमारे शत्रु नहीं अपितु मित्र हैं। नागों के जिस विष से हम भयभीत रहते हैं, उसी विष से विभिन्न रोगों के लिए औषधियां तैयार की जाती हैं। हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों का भक्षण कर नाग निरंतर अपनी मित्रता का संदेश हम मनुष्यों तक पहुंचाते रहते हैं। इस प्रकार जब हम नागों के अस्तित्व के संदर्भ में समग्र और व्यापक दृष्टिकोण रखकर अपने शास्त्रों का अवलोकन करते हैं तो इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि नागों का अस्तित्व उतना ही प्राचीन है जितना कि हमारे वेद।

    इस तरह उल्लेखित है सर्पों का महत्व

    ऋग्वेद में अहिर्बुध्य शब्द का कुल 12 बार उल्लेख हुआ है, जिसका अर्थ गहराई के सर्प के संदर्भ में किया जाता है। वेदोत्तरकालीन साहित्य में अहिर्बुध्य रुद्र का एक नाम बन जाता है और तब यह शिव का विशेषण बनकर आता है। यजुर्वेद में सर्पों का उल्लेख आध्यात्मिक और दिव्य संदर्भों में हुआ है। वहीं, अथर्ववेद में सर्पों की कृपा प्राप्त करने और सर्प विष को समाप्त करने के मंत्रों और औषधियों का उल्लेख है। अस्तु गोपथ ब्राह्मण में अथर्ववेद का उपवेद सर्पवेद कहा गया है। वराहपुराण में नागों की उत्पत्ति कडू से उत्पन्न कश्यप की संतान के रूप में व्याख्यायित है, जिनका स्थान पाताल लिखा गया है।

    इस तरह उत्पत्ति

    विशेष वराहपुराण में नागों की उत्पत्ति के संबंध में कथानक है कि सृष्टि के आरंभ में कश्यप उत्पन्न हुए। उनकी पत्नी कडू से उन्हें अनंत, वासुकि, कंबल, कर्कोटक, पद्य, महापद्य, शंख, कुलिक और अपराजित जैसे पुत्र उत्पन्न हुए। कश्यप के ये सब पुत्र नाग कहलाए। इनके पुत्र पौत्र बहुत ही क्रूर और विषधर हुए। इस पर प्रजा ने ब्रह्मा से गुहार लगाई। ब्रह्मा ने नागों से कहा कि जिस प्रकार तुम हमारी सृष्टि का नाश कर रहे हो, उसी प्रकार माता के शाप से तुम्हारा भी नाश होगा। नागों ने डरते-डरते कहा कि महाराज आप ही ने हमें कुटिल और विषधर बनाया है तो आखिर हमारा क्या अपराध। हमें रहने के लिए कोई अलग स्थान बतला दीजिए। इस पर ब्रह्मा ने उनके रहने के लिए तीन लोक पाताल, वितल और सुतल तय किए।

    12 नाग अलग-अलग चलते प्रत्येक मास

    इसी तरह, विष्णु पुराण और ज्योतिष के अनुसार सूर्य के रथ में प्रत्येक मास में 12 नाग अलग-अलग चलते हैं। जैसे चैत्रादि मास में क्रमशः वासुकी, कच्छवीर, तक्षक, नाग, एलापुत्र, शंखपाल, धनंजय, ऐरावत, महापद्म, कर्कोटक, कंबल, अश्वतर। इस दृष्टि से नाग पृथ्वी के वातावरण और जलवायु को भी प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहीं, भविष्य पुराण में आस्तिक मुनि द्वारा यज्ञ से नागों को बचाने की कथा है।

    Nag Panchami

    नागों का दूध से अभिषेक 

    कहा जाता है कि आस्तिक मुनि ने यज्ञ की आग में जलते हुए नागों पर दूध से अभिषेक किया था। इससे उन्हें शीतलता मिली और नागों ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो भी मनुष्य नाग पंचमी के दिन उनकी पूजा करेगा, उसे नाग देश का भय नहीं रहेगा। इसी प्रकार, अग्नि पुराण में नागों के 80 कुलों का विवरण प्राप्त होता है। गरुड़ पुराण में नागों की पूजा को पितरों की शांति और वंशवृद्धि से भी जोड़ा गया है।

    नागपंचमी की लौकिक व्रत कथा

    किसी गांव में एक किसान परिवार अपने पुत्र एवं पुत्री के साथ आनंदपूर्वक रहता था। एक दिन जब अपना खेत जोत रहा था तो एक सर्पिणी के तीन बच्चे हल के नीचे कुचलकर मर गए। सर्पिणी ने बदला लेने के लिए किसान और उसके पुत्र को रात्रि में डस लिया। प्रातः जब किसान.पुत्री ने देखा कि भाई और पिता को सर्पिणी ने डस लिया है तो वह सर्पिणी के लिए दूध से भरा कटोरा लेकर आई और उस सर्पिणी से अपने पिता के अपराध की क्षमा मांगने लगी। इससे सर्पिणी का क्रोध प्रेम में बदल गया और प्रसन्न होकर उसके पिता और भाई को जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। किंवदंती है कि उसी दिन से नाग पूजा की परंपरा चल पड़ी।

    ज्योतिष विज्ञान में पंचमी तिथि के स्वामी सर्प

    ज्योतिष के अंतर्गत पंचमी तिथि के स्वामी सर्प हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी अहिर्बुधन्य हैं, जिनका उल्लेख ऋग्वेद में किया जा चुका है। अहिए सर्प और नाग एक दूसरे के पर्याय हैं। आश्लेषा नक्षत्र के स्वामी सर्प है, जिनका उल्लेख यजुर्वेद में किया जा चुका है। कुंडली में राहु-केतु की दशा ठीक न हो तो नागपंचमी के दिन नागों की पूजा से लाभ पाया जा सकता है। कुंडली में अगर कालसर्प दोष हो तो ऐसे जातकों को इस दिन नागपूजा करने से इस दोष से मुक्ति मिल जाती है। कालसर्प दोष कुंडली में तब आता है जब सारे ग्रह राहु और केतु के मध्य आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त राहु-केतु के कारण यदि जीवन में कोई समस्या या बाधा आ रही है तो नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने पर राहु-केतु के दोष का प्रभाव कम हो जाता है। कुंडली में विषकन्या या अश्वगंधा योग हो तो ऐसे जातकों को इस दिन नाग पूजा अवश्य करनी चाहिए।

    संस्कारों एवं कर्मकांड में नागों की उपस्थिति

    पवित्र यज्ञोपवीत के तृतीय तंतु के देवता नाग हैं। नवग्रहों में राहु के प्रत्यधिदेवता सर्प हैं। दश दिग्पालों में अनंत, शेषनागद्ध भी हैं, जिनका स्थान अधोलोक अर्थात् पाताल है। जिन्होंने पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर रखा है। आध्यात्मिक विज्ञान-योग के आध्यात्मिक क्रम में कुडलिनी को साढ़े तीन हाथ लंबी एक सर्पाकृति के रूप में कल्पित किया गया है जो मूलाधार में अधोमुखी है। योगीजन इसी अधोमुखी सर्पाकार कुंडलिनी को योग के द्वारा ऊर्ध्वमुख करके सहस्रधार तक पहुंचाते हैं।

    आधुनिक रसायन शास्त्र की समस्या का सर्पस्वप्न द्वारा समाधान

    स्वप्न में सर्प द्वारा बेंजीन की संरचना का निर्धारण जर्मन रसायनज्ञ फ्रेडरिक आगस्ट केकुले बेंजीन की संरचना को लेकर विचार मंधन कर रहे थेए किंतु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे थे एक रात उन्होंने स्वप्न में एक सांप को अपनी पूंछ को मुंह में दबाए हुए देखा, जिससे उन्हें बेंजीन की संरचना की कल्पना करने की प्रेरणा मिली। इसी आधार पर 1865 ई में उन्होंने एक शोधपत्र प्रकाशित किया जिसमें बेंजीन को छह कार्बन परमाणुओं के एक वलय के रूप में निरूपित कियाए जिनमें से प्रत्येक एक हाइड्रोजन परमाणु से बंधा होता है।

    ये प्रमुख नाग जिनका वेद-पुराणों में वर्णन

    • अनंत- यह नागों में सबसे महान माने जाते हैं और भगवान् विष्णु के आसन के रूप में भी जाने जाते हैं।
    • वासुकी- इन्हें भगवान शिव के गले का हार माना जाता है।
    • शेष- इन्हें भी भगवान विष्णु का आसन माना जाता है और ये हजार फनों वाले नाग हैं।
    • पद्म- यह नागों में से एक हैं और इनकी पूजा नाग पंचमी के दिन की जाती है।
    • कम्बल- यह भी एक प्रमुख नाग देवता हैं।
    • कर्कोटक- यह नागों में से एक हैं जिन्होंने महाराज नल को डंस कर कृष्ण वर्ण का कर दिया था।
    • अश्वतर- यह भी एक प्रमुख नाग देवता हैं।
    • धृतराष्ट्र- यह नागों में से एक हैं और इनकी पूजा नाग पंचमी के दिन की जाती है।
    • शंखपाल- यह भी एक प्रमुख नाग देवता हैं।
    • कालिया- यह वही नाग है जिसका दमन यमुना जी में भगवान् कृष्ण ने किया था।
    • तक्षक- यह भी एक प्रमुख नाग हैं जो देवताओं के स्वामी इंद्र के मित्र हैं।
    • पिंगल- यह नागों में से एक हैं और इनकी पूजा नाग पंचमी के दिन की जाती है।