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    Mahashivratri 2025: शीघ्र विवाह के लिए महाशिवरात्रि पर करें इन मंत्रों का जप, मिलेगा मनचाहा पार्टनर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 25 Feb 2025 02:05 PM (IST)

    महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2025 Importance) के दिन भद्रावास योग का संयोग बन रहा है। इसके साथ ही श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र का संयोग है। इन योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। महाशिवरात्रि के दिन देवों के देव महादेव का जलाभिषेक करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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    Mahashivratri 2025: भगवान शिव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, बुधवार 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है। यह पर्व महादेव को समर्पित होता है। इस दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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    ज्योतिष शीघ्र विवाह के लिए अविवाहित जातकों को महाशिवरात्रि पर व्रत रख भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने की सलाह देते हैं। इस व्रत को करने से कुंडली में गुरु और शुक्र ग्रह मजबूत होता है। साथ ही कुंडली में व्याप्त अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। अगर आप भी शीघ्र विवाह करना चाहते हैं, तो महाशिवरात्रि के दिन पूजा के समय इन मंत्रों का जप और अर्गला स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    शीघ्र विवाह के मंत्र

    1. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रों स: गुरूवे नम:

    2. हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया।

    मां कुरु कल्याणि कान्तकातां सुदुर्लभाम्॥

    3. ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी।

    नन्द गोपसुतं देवि पति में कुरुते नम:।।

    4. ॐ शं शंकराय सकल जन्मार्जित पाप विध्वंस नाय पुरुषार्थ

    चतुस्टय लाभाय च पतिं मे देहि कुरु-कुरु स्वाहा ।।

    5. ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्रप्रिय भामिनि।

    विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रं च देहि मे ।।

    6. ॐ शं शंकराय सकल जन्मार्जित पाप विध्वंस नाय

    पुरुषार्थ चतुस्टय लाभाय च पतिं मे देहि कुरु-कुरु स्वाहा ।।

    7. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

    मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

    8. क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा

    9. ॐ सृष्टिकर्ता मम विवाह कुरु कुरु स्वाहा

    10. ॐ श्रीं वर प्रदाय श्री नमः

    अथार्गलास्तोत्रम्

    ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

    दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

    जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

    जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥

    मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।

    तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

    इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।

    स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥

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