Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Maharshi Dadhichi: शत्रु मानने वाले इंद्र की सहायता से भी नहीं हिचकिचाए थे महर्षि दधीचि, जानिए कथा

    Updated: Tue, 20 May 2025 01:12 PM (IST)

    भारत की भूमि कई परोपकारी राजा और साधु-संतों का जन्म हुआ है। उनसे संबंधित कथाएं आज भी मानव मात्र के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही ऋषि महर्षि दधीचि (Maharshi Dadhichi) के विषय में बताने जा रहे हैं। आइए पढ़ते हैं ऋषि महर्षि दधीचि के परोपकार की कथा।

    Hero Image
    Maharshi Dadhichi महर्षि दधीचि के परोपकार की कथा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महर्षि दधीचि का नाम प्राचीन काल के परम तपस्वी और ख्याति प्राप्त ऋषियों में लिया जाता है। महर्षि दधीचि, ऋषि अथर्वा और चित्ति के पुत्र थे। वेद शास्त्रों के ज्ञाता थे। साथ ही वह भगवान शिव के अनन्य भक्त भी थे। दूसरों के कल्याण के लिए महर्षि दधीचि (Rishi Dadhichi Story) ने अपनी अस्थियां दान की थीं। चलिए जानते हैं इससे जुड़ी कथा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    देवराज इंद्र के मन में बैठा डर

    एक बार महर्षि दधीचि की कठोर तपस्या के चलते उनके तप के तेज की चर्चा चारों ओर होने लगी। इस कारण देवराज इंद्र को लगने लगा कि कहीं महर्षि दधी उनसे उनका इंद्रासन न छीन लें। अपने इसी डर के चलते देवराज इंद्र ने महर्षि दधीचि की तपस्या भंग करने के लिए एक अप्सरा को भी भेजा, लेकिन वह सफल न हो सकी।

    ब्रह्मा जी के पास पहुंचे सभी देवतागण

    एक बार वृत्रासुर नामक एक राक्षस ने देवलोक पर अधिकार स्थापित कर लिया और इन्द्र सहित सभी देवताओं को देवलोक से निष्कासित कर दिया। इससे परोशान होकर सभी देवगण ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें यह सुझाव दिया कि महर्षि दधीचि ही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। अगर वह अपनी अस्थियों का दान कर दें, तो उनसे एक वज्र बनाकर वृत्रासुर राक्षस वध किया जा सकता है।

    यह भी पढ़ें - Shri Rudranath Temple: इस मंदिर में महादेव के मुख की होती है पूजा, पांडवों से है खास संबंध

    महर्षि के परोपकार की कथा

    ब्रह्मा जी की यह बात सुनने के बाद देवराज इन्द्र को लगा कि मैंने तो महर्षि दधीचि की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी, अब वह मेरी सहायता भला क्यों करेंगे। लेकिन देवराज इन्द्र के पास इसके अलावा कोई उपाय नहीं था। इसलिए इंद्रदेव महर्षि दधीचि के पास पहुंचे और हिचकिचाते हुए कहने लगे कि हे ऋषि, तीनों लोकों के कल्याण के लिए हमें आपकी अस्थियों की आवश्यकता है।

    इस पर महर्षि ने बड़ी ही विनम्रता के साथ इन्द्रदेव को उत्तर दिया कि यदि मेरी अस्थियों से मानव और देवताओं का भला होता होता है, तो इसे में अपना सौभाग्य समझूंगा। यह सुनने के बाद इन्द्रदेव को आश्चर्य भी हुआ और आत्मग्लानि भी महसूस हुई।

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image) (प्रतीकात्मक इमेज)

    अस्थियों से बना व्रज

    महर्षि ने योग विद्या से अपना शरीर त्याग दिया और अंत में केवल उनकी अस्थियां ही शेष रह गईं। इन्द्रदेव ने उन अस्थियों को श्रद्धापूर्वक नमस्कार किया और उनकी सहायता से ‘तेजवान’ नामक व्रज बनाया। इस व्रज की सहायता से वृत्रासुर का अंत हुआ और देवताओं को पुनः देवलोक की प्राप्ति हो गई।

    यह भी पढ़ें - Baba Vanga Predictions 2025: बाबा वेंगा ने की हैं ये भविष्यवाणियां, जिससे डरी हुई है दुनिया

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।