Maharana Pratap Jayanti 2025: आपके तन-मन को साहस से भर देंगी महाराणा प्रताप जी से जुड़ी ये बातें
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर महाराणा प्रताप जी की जयंती मनाई जाती है। मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती 29 मई को मनाई जाएगी। उनका जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। वह मेवाड़ के 13वें शासक उदय सिंह द्वितीय जी के सबसे बड़े पुत्र थे।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भारत की भूमि महान योद्धाओं की भूमि रही है, जिन्होंने भारत की एकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे ही एक योद्धा थे महाराणा प्रताप, जो राजपूतों के सिसोदिया वंश से संबंध रखते थे। महाराणा प्रताप जी की जयंती के मौके पर उन्हें उनके बहादुरी, साहस व योगदान के लिए याद किया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जो आपको अंदर साहस और बहादुरी की उमंग भर देंगी।
महाराणा प्रताप से जुड़ी खास बातें
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार उनकी जयंती ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाई जाती है। युवावस्था में ही महाराणा प्रताप ने तलवारबाजी, घुड़सवारी और युद्धनीति में महारत हासिल कर ली थी।
राजस्थान में उन्हें एक नायक के रूप में सम्मानित किया गया है। उनकी बहादुरी और साहस को याद करते हुए अनेक राजसीय परिवारों द्वारा उनकी पूजा भी की जाती है।
हल्दीघाटी के युद्ध से मिली प्रसिद्धि
महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के सेनापति राजा मान सिंह के बीच 8 जून 1576 में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप ने लगभग 20 हजार सैनिकों के साथ 80 हजार की मुगल सेना से बहुत ही बहादुरी के साथ सामना किया। इस युद्ध में उनका प्रिय घोड़ा चेतक भी वीरगति को प्राप्त हो गया, लेकिन इसके बाद भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और युद्ध जारी रखा। हालांकि अंत में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
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जीवन भर किया संघर्ष
महाराणा प्रताप ने अपनी वीरता का प्रमाण देते हुए धीरे-धीरे अपने राज्य के अनेक हिस्सों पर पुनः अधिकार स्थापित कर लिया था। मुगल शासक अकबर ने मेवाड़ पर अपना अधिकार स्थापित करने की भरपूर कोशिश की।
लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया और जीवन भर मुगलों के खिलाफ स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करते रहे। इसके लिए वह परिवार के साथ जंगलों में भटके। उनके शौर्य और वीरता की कहानी को आज भी बहुत ही गर्व के साथ याद किया जाता है।
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