Mahabharata: घटोत्कच के प्राण कैसे बने अर्जुन के लिए वरदान, यहां जानें कथा
घटोत्कच भीम और हिडिम्बा के पुत्र थे जिनका वर्णन महाभारत ग्रंथ (Mahabharat) में मिलता है। उन्होंने युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी और वह कौरवों की सेना पर भारी पड़े थे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह कर्ण का घटोत्कच पर अपने दिव्यास्त्र से प्रहार करना कैसे अर्जुन के लिए वरदान बन गया।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत ग्रंथ में कई महान योद्धाओं का वर्णन मिलता है। कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया यह युद्ध 18 दिनों तक चला था। अंत में इस युद्ध में पांडवों की जीत हुई, जिसमें कई योद्धाओं का योगदान रहा। आज हम आपको एक ऐसे ही योद्धा घटोत्कच के बारे में बताने जा रहे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को थी ये चिंता
कर्ण के पास इंद्रदेव द्वारा दिया हुआ अमोघ अस्त्र "वासावी" था, जिसका प्रयोग वह अर्जुन पर करना चाहता था। तब भगवान कृष्ण इस बात को लेकर चिंतित थे कि कर्ण कहीं अपने अमोघ वाण से अर्जुन पर प्रहार न कर दे। ऐसा करने पर अर्जुन का बच पाना असंभव होता।
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इस तरह हुई घटोत्कच की मृत्यु
इस दौरान भीम के पुत्र घटोत्कच युद्ध भूमि में आ गए, जिससे कौरवों की सेना में हाहाकार मच गया। तब यह देखकर दुर्योधन ने कर्ण को अपना अमोघ अस्त्र वासावी घटोत्कच पर इस्तेमाल करने को कहा। तब कर्ण को विवश होकर अपने दिव्य अस्त्र का इस्तेमाल करना पड़ा, जिससे घटोत्कच की मृत्यु हो गई। इस प्रकार घटोत्कच के प्राण अर्जुन के लिए एक वरदान साबित हुए।
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कैसे पड़ा घटोत्कच नाम
लाक्षागृह से बच निकलने के बाद जब पांडव वन में चले गए थे, तब हिडिंबा नामक एक राक्षसी ने भीम को देखा और उन्हें पंसद करने लगी। तभी वहां हिडिंबा का भाई हिडिंबासुर आ गया और उसने भीमसेन पर हमला कर दिया। दोनों में युद्ध हुआ और भीम ने हिडिंबासुर का वध कर दिया। इसके बाद हिडिम्बा ने भीम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन भीम ने विवाह से इंकार कर दिया।
तब माता कुंती के कहने पर भीम विवाह के लिए तैयार हो गए। इस प्रकार राक्षसी हिडिंबा और भीमसेन के पुत्र घटोत्कच ने जन्म लिया, जिनका शरीर बहुत ही विशालकाय था। एक राक्षसी के पुत्र होने की कारण घटोत्कच के पास मायावी शक्तियां थी। वह बहुत ही बलशाली थे और उसके सिर पर कोई बाल नहीं था, जिस वजह से उनका नाम घटोत्कच पड़ा।
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