Mahabharat Katha: दुर्योधन की जान बचाने के बदले अर्जुन ने मांगा ये वरदान, युद्ध में हासिल की जीत
इस विषय में तो लगभग सभी जानते हैं कि दुर्योधन और अर्जुन आपस में दुश्मन थे लेकिन हम आज आपको एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके अनुसार दुर्योधन ने अपनी ही दुश्मन अर्जुन को वरदान में तीर (Duryodhan Arjun arrows) दिए थे। आज हम आपको अर्जुन और दुर्योधन से संबंधित इसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत (Mahabharata secrets) के अनुसार, दुर्योधन, धृतराष्ट्र का पुत्र था। राजा का पुत्र होने के कारण उसमें काफी अहंकार भी था। साथ ही वह पांडवों खासकर अर्जुन से बहुत ईर्ष्या करता था। वह हर कीमत पर पांडवों को नीचा दिखाना चाहता था। लेकिन एक प्रसंग ऐसी भी मिलता है, जहां दुर्योधन ने अर्जुन को एक वरदान दिया था।
यज्ञ में पहुंचा दुर्योधन
महाभारत ग्रंथ में वर्णित कथा के अनुसार, जब पांडव वनवास भोग रहे थे, तब उन्होने एक यज्ञ का आयोजन किया। दुर्योधन नहीं चाहता था कि पांडवों का यह यज्ञ सफल हो, इसलिए यज्ञ को प्रभावित करने के लिए दुर्योधन भी वहां पहुंच गया। तब अर्जुन ने अपने यज्ञ की रक्षा करने के लिए इंद्रदेव से प्रार्थना की। जब दुर्योधन ने यज्ञ में बाधा पहुंचाने का प्रयास किया, तो इंद्रदेव के गंधर्वों ने दुर्योधन को रस्सी से बांध लिया और उसे स्वर्गलोक ले गए।
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अर्जुन ने बचाई जान
लेकिन जब इस बात का पता अर्जुन को चला, तो वह दुर्योधन की सहायता करने के लिए स्वयं स्वर्गलोक पहुंच गया। अर्जुन ने गंधर्वों से कहा कि, दुर्योधन यज्ञ में मारा अतिथि बनकर आया है। ऐसे में उसके प्राणों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य बनता है। अर्जुन की यह बात सुनकर गंधर्वों ने दुर्योधन को छोड़ दिया। दुर्योधन की जान बचाने के बदले अर्जुन ने उससे तीन तीर वरदान के रूप में मांगे।
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इस तरह किया तीरों का उपयोग
दुर्योधन को लगा था कि अर्जुन को तीन तीर देना कोई बड़ी बात नहीं है। साथ ही अर्जुन ने दुर्योधन से वचन लिया था कि अगर कभी कौरव और पांडवों के बीच युद्ध हुआ, तो वह इन तीरों का इस्तेमाल पांडवों पर भारी पड़ने वाले तीन महारथी योद्धाओं पर करेगा। परिणामस्वरूप अर्जुन ने इन तीरों का इस्तेमाल युद्ध में किया और पांडव इस युद्ध को जीतने में सफल रहे।
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