Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Mahabharata: गहरी दोस्ती के बाद भी क्यों द्रोणाचार्य ने लिया दुप्रद से बदला, इस शिष्य ने दिया साथ

    Updated: Fri, 07 Mar 2025 03:21 PM (IST)

    हिंदू धार्मिक ग्रंथ ज्ञान का भंडार हैं इन्हीं में से एक महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ भी है। द्रोणाचार्य महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र रहे हैं जो पांडवों और कौरवों दोनों के ही गुरु थे। द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज तथा घृतार्ची नामक अप्सरा के पुत्र तथा थे। आज हम आपको महाभारत में वर्णित उनसे जुड़ी एक कथा बताने जा रहे हैं।

    Hero Image
    Dronacharya and Drupada story (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत ग्रंथ (Mahabharat Katha) में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र मिलता है, जो व्यक्ति को अचरज में डाल सकती हैं। आज हम आपको महाभारत में वर्णित एक कथा बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से बदला लेने के लिए अपने शिष्यों का सहारा लिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पक्के मित्र थे द्रुपद और द्रोण

    पांचाल-नरेश का पुत्र द्रुपद और द्रोणाचार्य में गहरी दोस्ती थी। दोनों ने साथ ही शिक्षा प्राप्त की थी। आगे चलकर द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन हुआ। उसका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। वह अपने पुत्र से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन गरीब होने के कारण वह अपने पुत्र की सही से देखभाल नहीं कर पा रहे थे। जब उन्हें पता लगा कि द्रुपद अब राजा बन चुका है, तो वह बहुत प्रसन्न हुए और अपने मित्र से मदद मांगने की सोची।

    वह द्रुपद के पास पहुंचे और उनसे कहा कि मैं तुम्हारा बचपन का मित्र हूं द्रुपद, क्या तुमने मुझे पहचाना? लेकिन राजगद्दी के मद में चूर राजा द्रुपद को द्रोणाचार्य का आना अच्छा नहीं। तब उन्होंने द्रोण से क्रोध में आकर कहा कि "ब्राह्मण, सिंहासन पर बैठे हुए एक राजा के साथ एक दरिद्र प्रजाजन के साथ मित्रता कैसे हो सकती है?  इन कठोर वचनो को सुनने के बाद द्रोणाचार्य बड़े लज्जित और क्रोधित भी हुए। तब उन्होंने निश्चय किया कि एक दिन मैं इस अभिमानी राजा को सबक जरूर सिखाऊंगा।

    यह भी पढ़ें - Mahabharata Story: पुत्रमोह में आकर गांधारी ने तोड़ी थी प्रतिज्ञा, फिर भी नहीं बचा सकी दुर्योधन की जान

    अंत में कौन जीता युद्ध

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    इसके बाद द्रोणाचार्य हस्तिनापुर के राजकुमारों को अस्त्र-शिक्षा प्रदान करने लगे। जब राजकुमारों की शिक्षा पूरी हो गई, तो द्रोणाचार्य ने उनसे गुरु-दक्षिणा के रूप में पांचालराज द्रुपद को कैद कर लाने के लिए कहा। उनकी आज्ञानुसार पहले सबसे पहले दुर्योधन और कर्ण गए और द्रुपद के राज्य पर धावा बोल दिया, लेकिन द्रुपद के आगे टिक न सके। तब द्रोणाचार्य ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने पांचालराज की सेना को तहस-नहस कर दिया और राजा द्रुपद को उनके मंत्री सहित कैद करके आचार्य के सामने ला खड़ा किया।

    (Picture Credit: Freepik)

    द्रोणाचार्य ने कही ये बात

    द्रोणाचार्य ने द्रुपद से कहा- डरो नहीं राजन, बचपन में हमारी मित्रता थी, लेकिन तुमने ऐश्वर्य के मद में आकर मेरा अपमान किया। तुमने कहा था कि राजा ही राजा के साथ मित्रता कर सकता है। इसलिए मुझे युद्ध करके तुम्हारा राज्य छीनना पड़ा, लेकिन मैं तुमसे अभी भी मित्रता रखना चाहता हूं, इसलिए आधा राज्य तुम्हें वापस लौटा रहा हूं। अब हम दोनों की हैसियत बराबरी की हो गई।'' यह सब कहते हुए द्रोणाचार्य ने द्रुपद को बड़े सम्मान के साथ विदा कर दिया।

    यह भी पढ़ें - Mahabharat Katha: आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने इरावन से किया था विवाह, महाभारत में है इसका वर्णन

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।