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    Maa Kali: जनकल्याण के लिए मां दुर्गा बनी थीं महाकाली, महादेव ने शांत किया देवी के क्रोध का प्रचंड रूप

    Updated: Wed, 12 Mar 2025 02:27 PM (IST)

    हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मां काली बुराईयों का नाश करती हैं। साथ ही भगवती काली को वीरता और साहस का प्रतीक भी माना गया है। मां काली का रूप काफी प्रचंड है जिसके पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है। इस कथा का वर्णन श्रीदुर्गा सप्तशती और श्री मार्कण्डेय पुराण में मिलता है। चलिए जानते हैं इसके बारे में।

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    Maa Kali Story (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मां काली जिन्हें, कालरात्रि, कालिका आदि नामों से भी जाना जाता है, वह मां सती का ही रौद्र रूप हैं। मां काली का स्वरूप भले भयंकर प्रतीत होता है, लेकिन वह अपने भक्तों की सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र और रोग-दोष से रक्षा करती हैं। उनकी उत्पत्ति कई बलशाली दैत्यों का नाश करने के लिए हुई थी। ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर किस प्रकार मां काली ने  शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों का संहार किया।

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    कैसा है मां काली का स्वरूप

    मां काली के स्वरूप की बात करें, तो वह गर्दभ (गधा) की सवारी करती हैं और नरमुंड की माला पहनती हैं। उनके एक हाथ में खप्पर और एक हाथ में तलवार है। काली माता के एक हाथ में कटा हुआ एक सिर है, जिसमें से रक्त टपकता रहता है। यह सिर रक्तबीज नामक एक राक्षस का है, जिसका मां काली ने वध किया था।

    इस तरह हुई मां काली की उत्पत्ति

    श्रीदुर्गा सप्तशती और श्री मार्कण्डेय पुराण में मां काली की उत्पत्ति की मिलती है, जिसके अनुसार, एक बार शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों का आतंक काफी बढ़ गया था। उन्होंने छल व बल के प्रयोग से अन्य देवताओं समेत देवराज इंद्र को निष्कासित कर दिया।

    तब सभी देवताओं ने मिलकर मां दुर्गा जी आह्वान किया। मां काली की उत्तप्ति जगत जननी मां अंबे के ललाट से हुई। उन्होंने अपने इस प्रचंड रूप में शुम्भ-निशुम्भ के चंड और मुंड नामक असुरों से युद्ध किया और एक-एक करके उन दोनों का संहार कर दिया और उनके समेत अन्य राक्षसों की माला भी अपने गले में धारण कर ली।

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

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    इस तरह किया शुम्भ-निशुम्भ का अंत

    इसके बाद दैत्यराज शुम्भ ने क्रोधित होकर अपनी पूरी सेना को युद्ध करने का आदेश दिया और अपनी अत्यंत क्रूर सेना के साथ युद्ध करने चल पड़ा। तब देवी ने अपने धनुष की सहायता से एक ऐसी टंकार दी, जिसकी आवाज पूरे आकाश और पृथ्वी पर गूंज उठी।

    इसके बाद भगवती काली ने समस्त सेना से युद्ध किया और शुम्भ-निशुम्भ को भी मार डाला, लेकिन इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ और वह गुस्से में आगे बढ़ने लगीं। तब भगवान शिव माता के रास्ते में लेट गए और इस दौरान उनका पैर भगवान के सीने पर पड़ गया। यह देखकर उनका क्रोध शांत हुआ।

    (Picture Credit: Freepik)

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।