Lord Shiva Third Eye: भगवान शंकर के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?
भगवान शंकर के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति (Lord Shiva Third Eye Origin) चाहे कामदेव को भस्म करने की घटना से जुड़ी हो या फिर अपार ऊर्जा से जुड़ी हो। यह उनकी शक्ति ज्ञान और ब्रह्मांडीय दृष्टि का महत्वपूर्ण प्रतीक है। कहा जाता है कि इसके प्रभाव जीवन की नकारात्मकता दूर होती है। हालांकि इसके रहस्य को जान पाना मुश्किल है तो चलिए इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं पर नजर डालते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान शिव की पूजा का सनातन धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। उन्हें त्रिलोचन के नाम से भी जाना जाता है, जो शक्ति और ज्ञान का प्रतीक हैं। शंकर जी के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति (Lord Shiva Third Eye Origin) को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। महादेव के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति का वर्णन शिव पुराण में भी मिलता हैं, तो आइए इससे जुड़ी कथाएं पढ़ते हैं, जो इस प्रकार हैं।
पहली कथा (Lord Shiva Third Eye Origin 1st Kath )
प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव जब सती के वियोग में तपस्या में लीन थे, तब देवताओं को तारकासुर नाम का असुर बहुत परेशान कर रहा था। तब ब्रह्माजी ने बताया था कि तारकासुर का वध केवल शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है। देवताओं ने शिव और पार्वती के विवाह के लिए कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने अपने पुष्प बाणों से शिव के ध्यान को भंग करने का प्रयास किया।
क्रोधित होकर भगवान शंकर ने अपनी आंखें खोलीं और उनके ललाट से एक प्रचंड अग्नि ज्वाला निकली। इस ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया। ऐसा माना जाता है कि यही अग्नि ज्वाला भगवान शिव का तीसरा नेत्र बनी।
दूसरी कथा (Lord Shiva Third Eye Origin 2nd Katha)
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान शिव का तीसरा नेत्र ऊर्जा का प्रतीक है। यह नेत्र भूत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ देखने की क्षमता रखता है। कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने सृष्टि के रहस्यों और समय के चक्र को गहराई से अनुभव किया, तो उनके ज्ञान और अंतर्दृष्टि के प्रतीक के रूप में उनके माथे पर तीसरा नेत्र प्रकट हुआ। कहते हैं कि यह नेत्र अहंकार, अज्ञानता और भ्रम के अंधकार को दूर करने वाली ज्ञान की ज्योति है।
तीसरे नेत्र का महत्व (Lord Shiva Third Eye Origin Significance)
भगवान शिव के तीसरे नेत्र का बड़ा महत्व है। यह एक अंग नहीं है, बल्कि यह उनकी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके साथ ही यह भोलेनाथ के ज्ञान, विवेक, और सत्य की पहचान का प्रतीक है। यह नकारात्मकता और बुराई को नष्ट करने की क्षमता रखता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, तीसरा नेत्र अंतर्ज्ञान और उच्च चेतना का केंद्र माना जाता है, जिसे जागृत करने से व्यक्ति दिव्य ज्ञान और सत्य का अनुभव कर सकता है।
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