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    Lalita Jayanti 2025: ललिता जयंती के दिन जरूर करें इस कथा का पाठ, प्रसन्न होंगी देवी मां

    Updated: Tue, 11 Feb 2025 07:00 PM (IST)

    देवी पुराण में माता पार्वती के ललिता अवतार का वर्णन मिलता है। धार्मिक मत है कि ललिता जयंती पर (Lalita Jayanti 2025 Vrat Katha) श्रद्धाभाव से माता ललिता की पूजा-अर्चना और व्रत करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है साथ ही सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां ललिता को राजेश्वरी षोडशी त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है।

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    Lalita Jayanti 2025: माता ललिता की कथा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर ललिता जयंती मनाई जाती है, जिसे षोडशी जयंती भी कहा जाता है। ऐसे में इस साल यह जयंती बुधवार 12 फरवरी को मनाई जाएगी। इस दिन दस महाविद्याओं में से एक माता ललिता की पूजा-अर्चना की जाती है, जो तीसरी महाविद्या हैं। माना जाता है कि इसी दिन पर उनका अवतरण हुआ था। ऐसे में चलिए जानते हैं ललिता जयंती की कथा।

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    माता ललिता की कथा (Lalita Mata Ki Kahani)

    कथा के अनुसार, एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ हो रहा था, जिसमें दक्ष प्रजापति भी पहुंचे थे। उन्हें देखकर सभी देवगण उनके सम्मान में खड़े हो गए, लेकिन भगवान भोलेनाथ अपने आसन पर बैठे रहे। इसे दक्ष ने अपना अपमान समझा। इसके बाद प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजना किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के भाव से भोलेनाथ को न्योता नहीं दिया गया।

    माता सती नहीं सह सकीं अपमान

    माता पार्वती भी शिव जी से उस यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। तब भगवान शिव ने उनसे कहा कि हमें बुलावा नहीं मिला है, ऐसे में हमारा यज्ञ में जाना उचित नहीं होगा। लेकिन वह शिव जी की बात न मानते हुए अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ में चली गईं। वहां, दक्ष ने शिव जी का बहुत अपमान किया, जिसे माता सती सह न सकीं और उन्होंने अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

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    यहां गिरा था सती माता का हृदय

    जब इस बात का पता महादेव को चला, तो वह बहुत क्रोधित हो गए। यज्ञ में पहुंचकर उन्होंने मां सती के शव को कंधे पर उठाया और क्रोध में इधर-उधर घूमने लगे। इस दौरान पूरे विश्व में हाहाकार-सा मच गया। ऐसे में भगवान विष्णु जी ने शिव जी को शांत करने के भाव से अपने चक्र की मदद से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए।

    माता सती के अंग धरती पर जहां-जहां गिरे वह उन्हीं आकृतियों में उस स्थान पर विराजमान हो गईं, जिन्हें आज हम 51 शक्तिपीठों के नाम से जानते हैं। माना जाता है कि नैमिषारण्य में माता सती का हृदय गिरा था, इन्हें ही ललिता देवी के नाम से जाना जाता है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।