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गणपति के 8 अवतारों में से छठे हैं विकट जानें इनकी कहानी

श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। उन्हीें की कहानी सुनिए पंडित दीपक पांडे से, आज जानिए विकट अवतार के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 04:29 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 09:15 AM (IST)
गणपति के 8 अवतारों में से छठे हैं विकट जानें इनकी कहानी
गणपति के 8 अवतारों में से छठे हैं विकट जानें इनकी कहानी

गणेश के अवतार 

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पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के विकट अवतार के बारे में।  

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इस बार किया कामासुर के अहंकार का नाश 

कामा असुर के अत्याचारों का अंत करने के लिए भगवान गणेश ने विकट अवतार लिया था। प्राचीन काल में श्री विष्णु से काम असुर उत्पन्न हुआ था आैर उसने शिवजी से प्राप्त वरदान के बल पर तीनों लोगों को जीत लिया था। इस पर देवगणों ने भगवान श्री गणेश की उपासना कि जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने विकट अवतार में कामा असुर से युद्ध किया। जब अंत में पराजित कामा सुर उनकी शरण में चला गया, तब ब्रह्मांड को उसके अत्याचारों से मुक्ति मिली।  

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विष्णु का अंश था कामासुर 

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु जब जलन्धर के वध के लिए वृंदा का तप नष्ट करने पहुंचे तो उनके शुक्र से एक अत्यंत तेजस्वी असुर पैदा हुआ। कामाग्नि से पैदा होने के कारण उसका नाम कामासुर हुआ। दैत्यगुरु शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त करके उसने भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए कठोर तपस्या की, जिससे अन्न, जल त्याग के कारण उसका शरीर जीर्ण शीर्ण हो गया। तब शिव जी ने प्रकट हो कर वर मांगने को कहा। उसने कामना की कि वह ब्रह्माण्ड का स्वामी, शिवभक्ति आैर मृत्युन्जयी होने का वरदान प्रदान किया जाए। दैत्यों का अधिपति बनने के बाद उसका महिषासुर की पुत्री से विवाह हुआ। इसके बाद कामासुर ने रावण, शम्बर, महिष आैर बलि को अपनी सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त कर दिया। धीरे धीरे उसने पृथ्वी के समस्त राजाओं को पराजित कर, स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया।  तब महर्षि मुद्गल के मार्ग दर्शन में सभी  देवी, देवता आैर ऋषि, मुनि श्री गणेश की उपासना करने लगे । जिससे प्रसन्न होकर वे विकट अवतार में प्रकट हुए। तब सबने उनसे कामासुर के अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए विनती की। 

श्री विकट ने सभी देवी देवताओं के साथ मिलकर कामासुर की राजधानी को घेर लिया और उसको युद्ध के लिए ललकारा । घमासान युद्ध हुआ आैर कामासुर के दोनों पुत्र मारे गए। कामासुर ने क्रोधित होकर श्री विकट पर अपनी गदा फ़ेंक कर प्रहार किया परन्तु वह विफल हो गया। अब श्री विकट ने क्रोधपूर्ण दृष्टि से कामासुर पर डाली जिससे वेा मूर्छित हो कर पृथ्वी पर गिर गया।  उसकी समस्त शक्ति नष्ट हो गर्इ तब भयभीत कामासुर ने विकट जी के चरणों में अपना सिर रख कर क्षमा याचना की आैर अपने अस्त्र शस्त्र त्याग उनकी शरण में आ गया। 

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