गणपति के 8 अवतारों में से चौथे हैं गजानन जानें इनकी कहानी
श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। उन्हीें की कहानी सुनिए पंडित दीपक पांडे से, आज जानिए गजानन अवतार के बारे में।
श्री गणेश के अवतार
पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के गजानन अवतार के बारे में।
कुबेर के लोभ से जन्मा लोभासुर
कैलाश पर शिव और पार्वती के दर्शन लिए कुबेर पहुंचे पर देवी के रूप ने उन्हें हतप्रभ कर दिया आैर वे उन्हें एकटक निहारने लगे। ये बात देवी पार्वती को बेहद खराब लगी आैर उनके भय से कुबेर ने दृष्अि हटा ली, पर इस दौरान उनके मन जो लोभ उत्पन्न हुआ उससे लाभासुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। इसी लोभासुर ने कालांतर में तीनों लोकों के साथ कैलाश और वैकुंठ को भी जीत लिया तब देवताओं ने श्री गणेश की उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया। तब उन्होंने गजानन अवतार में प्रकट होकर तीनों लोकों के साथ ही बैकुंठ पति और कैलाश पति को भी लोभासुर से मुक्ति दिलाई।
जानें शिव को कैलाश त्यागने के लिए विवश करने वाले लोभासुर की पूरी कथा
कुबेर के शरीर उत्पन्न हुए लोभासुर दैत्य ने गुरु शुक्राचार्य के पास जाकर दीक्षा प्रदान करने का आग्रह किया। शुक्राचार्य ने उसे भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र की दीक्षा देकर उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए कहा। इसके बाद लोभासुर एक वन में जाकर भस्म धारण करके आैर अन्न -जल का त्याग कर शिव जी का ध्यान करते हुए पंचाक्षारी मन्त्र का जाप करने लगा। इस प्रकार उसने सहत्रों वर्षों तक अखण्ड तप किया। अंत में उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए आैर उससे वर मांगने को को कहा। लोभासुर ने तीनों लोकों में निर्भय रहने का वर मांग लिया। ये अमोघ वर पाने के बाद उसने दैत्यों की विशाल सेना एकत्र की जिससे पहले पृथ्वी के समस्त राजाओं को जीता आैर फिर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इन्द्र भी लोभासुर से पराजित होकर अमरावती से वंचित हो गए। इस पर इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में गए आैर लोभासुर को के संहार का अनुरोध किया। श्री हरि का उसके साथ भयानक संग्राम हुआ पर शिव के वरदान के चलते वह विजयी साबित हुआ। अब तो लोभासुर का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच गया आैर उसने शिव को कैलाश छोड़ने या युद्घ करने की चुनौती दे दी। अपने ही वरदान से मजबूर शिव भी कैलाश छोड़ने को विवश हुए आैर गणेश जी के पास पहुंचे। उधर रैभ्य मुनि की सलाह पर देवता भी गणेश जी की उपसना करने लगे। तब प्रसन्न होकर गणपति ने गजानन अवतार लिया आैर लोभासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने का वचन दिया।
इसके पश्चात स्वयं शंकर जी लोभासुर के पास गए आैर गजानन का संदेश सुनाया कि वो शरणागत हो कर शांतिपूर्ण जीवन बिताये, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाये। गुरु शुक्राचार्य ने भी गजानन की महिमा बताकर उनसे मैत्री करने में भलार्इ है एेसा कहा। इसके बाद लोभासुर ने गजानन की महिमा को समझा आैर उनकी चरण वंदना कर शरणागत हो गया।