Move to Jagran APP

Vinayak Chaturthi 2019: गणपति ने लिए थे 8 अवतार पांचवे हैं लंबोदर

श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। जानिए उनके पांचवे अवतार लंबोदर की कहानी पंडित दीपक पांडे से।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 04:22 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 05:00 PM (IST)
Vinayak Chaturthi 2019: गणपति ने लिए थे 8 अवतार पांचवे हैं लंबोदर

श्री गणेश के अवतार 

loksabha election banner

पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के लंबोदर अवतार के बारे में।  

ये भी पढ़ें: गणपति के 8 अवतारों में से चौथे हैं गजानन जानें इनकी कहानी

पिता शिव के मोह से जन्मे क्रोधासुर के अंत के लिए हुआ लंबोदर अवतार

जब समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने अमृत रक्षा के लिए मोहिनी रूप धारण किया था तो स्वयं शिव जी उनके रूप पर मोहित हो गए थे। इसके बाद मोहिनी रूप को त्याग अपने असली रूप में आये श्री हरि को देख कर उनका मोह क्रोध आैर क्षोभ में बदल गया आैर उनके स्खलन से क्रोधासुर नाम का राक्षस उत्पन्न हुआ जिसने सूर्य देव से ब्रह्मांड विजय का वरदान प्राप्त कर तीनो लोक कैलाश और बैकुंठ पर कब्जा जमा लिया स्वयं सूर्यदेव को भी सूर्यलोक छोड़कर जाना पड़ा तब सब देवताओं की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने लंबोदर अवतार लेकर क्रोधासुर से युद्ध कर उसे अपनी शरण में आने पर विवश कर दिया। 

ये भी पढ़ें: गणपति के 8 अवतारों में से तीसरे हैं महोदर जानें इनकी कहानी

अपने ही भार्इ को सबक सिखाने के लिए गणेश बने लंबोदर जानें कैसे 

इस पौराणिक कथा की मानें तो एक तरह से क्रोधासुर श्री गणेश का भार्इ ही था क्योंकि वो शिव जी के स्खलन से जन्मा उनका ही अंश था। उसी को नियंत्रित करने के लिए गणपति ने लंबोतर के रूप में अवतार लिया था, जानें क्या है पूरी कथा। भगवान विष्णु के मोहिनी रुप को देखकर भगवान शिव कामातुर हो गए। उसी समय उनका वीर्य स्खलित हुआ जिससे एक असुर पैदा हुआ। युवा होने पर वह शुक्राचार्य का शिष्य बना आैर उन्होंने उसका नाम क्रोधासुर रखा। शुक्राचार्य ने शम्बर दैत्य की कन्या प्रीति के साथ उसका विवाह भी करवा दिया। एक दिन क्रोधासुर ने आचार्य से इच्छा व्यक्त की कि वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों पर विजय प्राप्त करना चाहताहै। तब शुक्राचार्य ने उसे विधि पूर्वक सूर्य-मन्त्र की दीक्षा दी, आैर उनकी तपस्या करने के लिए कहा। इसके बाद क्रोधासुर ने घने जंगल में सारे मौसमों का प्रहार सहते हुए, अन्न जल त्याग कर सूर्य की कठोर तपस्या की। उसकी भक्ति से प्रसन्न हो कर सूर्य प्रकट हुए आैर उसे मृत्यु एवम् सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर विजय का इच्छित वरदान दिया। साथ ही उसे सर्वोत्तम योद्धा हाने का आर्शिवाद भी दिया। वरदान प्राप्त करके आने पर वो असुरों का राजा बना आैर ब्रह्मांड विजय के लिए चल पड़ा। पहले पृथ्वी फिर वैकुण्ठ और कैलाश पर उसने अधिकार कर लिया आैर अंत में उसने सूर्य को भी अपदस्थ करके सूर्यलोक पर भी अपना कब्जा कर लिया। अपने ही वरदान का ये परिणाम देख कर दुखी सूर्य अन्य देवी देवताआें आैर ऋषियों के साथ श्री गणेश की शरण में पहुंचे। उनका कष्ट जान कर गणेश जी ने लंबोदर अवतार लिया आैर क्रोधासुर पर आक्रमण कर दिया। दोनों में भीषण संग्राम हुआ आैर अंत में उनसे पराजित होकर क्रोध उनका शरणागत हो गया आैर अपने जीते हुए सभी लोकों को स्वतंत्र कर दिया। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.