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    Khatu Shyam Story: भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों मांगा था बर्बरीक से शीश का दान, मिला ये वरदान

    राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर की मान्यता बहुत अधिक है। यहां दूर-दूर से भक्त बाबा के दर्शन के लिए आते हैं। खाटू श्याम जी (Khatu Shyam history) को हारे का सहारा भी कहा जाता है जिसके पीछे एक बहुत ही अद्भुत कथा मिलती है। चलिए जानते हैं इसके बारे में।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Thu, 15 May 2025 01:11 PM (IST)
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    story of Shyam Baba भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को क्या वरदान दिया?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। बर्बरीक घटोत्कच के पुत्र और भीमसेन के पोते हैं, जिन्हें आज हम खाटू श्याम जी (Khatu Shyam Ji Story) के नाम से जानते हैं। इनका जिक्र महाभारत ग्रंथ में भी मिलता है। खाटू श्याम जी को हारे का सहारा, तीन बाण धारी और शीश का दानी भी कहा जाता है। आज हम आपको बर्बरीक से जुड़ी एक कथा के बारे में ही बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें यह खास वरदान दिया था।

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    मां को दिया था ये वचन

    महाभारत युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता से युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई। तब उनकी माता ने सोचा कि कौरवों के पास पांडवों के मुकाबले अधिक सेना और योद्धा हैं। तब उन्होंने अपने पुत्र को यह कहते हुए युद्ध में जाने की अनुमति दी कि वह युद्ध भूमि में हारे का सहारा बने। तब बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया था कि वह हारे हुए का साथ देंगे।

    इस तरह ली परीक्षा

    भगवान श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण भेष धारण किया और बर्बरीक के पास गए। उन्होंने बर्बरीक को रोककर कहा कि तुम केवल तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आए हो। इसपर बर्बरीक ने जवाब दिया कि मेरा एक बाण भी शत्रु सेना को परास्त करने के लिए काफी है। शत्रुओं का संहार करने के बाद मेरा बाण वापस तूणीर में ही आ जाएगा।

    तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें चुनौती देते हुए एक पीपल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि तुम अपने बाण से इस वृक्ष के सभी पत्तों को भेदकर दिखाओ। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करते हुए एक बाण निकाला और पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने पलभर में ही पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया।

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    (Picture Credit: Freepik)

    इसलिए मांगा शीश का दान

    लेकिन इस दौरान भगवान ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, इसलिए बाण उनके पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा। तब बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए। तब कृष्ण जी ने उससे पूछा कि तुम युद्ध में किसका साथ दोगे।

    इसपर बर्बरीक ने अपनी मां को दिए हुए वचन को दोहराया और कहा कि मैं हारे का सहारा बनूंगा। उस समय युद्ध भूमि में स्थिति बिल्कुल उलट थी, पांडव, कौरवों की सेना पर भारी पड़ रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण को लगा कि कौरवों को हारते हुए देखकर बर्बरीक कहीं उनका साथ न दे दे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने दक्षिणा के रूप में बर्बरीक जी से उनके शीश का दान मांगा, ताकि वह युद्ध में भाग न ले सकें।

    (Picture Credit: Freepik)

    भगवान कृष्ण ने दिया ये आशीर्वाद

    बर्बरीक ने बिना किसी संकोच के अपना सिर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया। बर्बरीक जी से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीष दिया कि कलियुग में उन्हें पूजनीय स्थान और प्रसिद्धि मिलेगी। साथ ही यह भी कहा कि तुम्हें मेरे नाम से पूजा जाएगा। इसलिए आज बर्बरीक जी खाटू श्याम के रूप में जाने जाते हैं।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।