Shri Krishna: कलयुग में सच साबित हो रही भगवान श्रीकृष्ण की ये बातें, इन श्लोकों में मिलता है सबूत
हिंदू ग्रंथों व पुराणों में कालावधि को 4 भागों में बांटा गया है। जिसमें से पहला है सतयुग त्रेतायुग द्वापर युग और कलयुग। अभी चौथा युग यानी कलयुग चल रहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने पहले ही कलयुग को लेकर कुछ घोषणाएं कर दी थी जो आज के समय में सच भी साबित हो रही हैं। चलिए जानते हैं इसके बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत की युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे, जो सर्वश्रेष्ठ ज्ञान के रूप में भी देखा जाता है। गीता के उपदेश श्रीमद्भगवत गीता में निहित हैं, जो आप के समय में भी व्यक्ति को सही राह दिखाने का काम करते हैं। साथ ही इस ग्रंथ में कलयुग को लेकर भी वर्णन किया गया है, जिन्हें हम इस श्लोक के माध्यम से जान सकते हैं।
घट जाएंगी ये चीजें
1. ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया।
कालेन बलिना राजन् नङ्क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः॥
इस श्लोक में कहा गया है कि कलयुग में व्यक्ति की याद करने की क्षमता के साथ-साथ सच्चाई, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवनकाल, शारीरिक बल आदि भी घटता जाएगा। आज इसका उदाहरण साफ तौर पर देखा जा सकता है।
धन और शक्ति का अधिक महत्व
2. वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि कलयुग में जिस व्यक्ति के पास जितना पैसा होगा, वह उतना ही गुणी समझा जाएगा। इसी के साथ कलयुग में न्याय और व्यवस्था भी बल पर निर्भर करेगी। कुल मिलाकर इस युग में धन और शक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है।
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ऐसे लोग होंगे विद्वान
3. लिङ्गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ॥
इस श्लोक में कहा गया है कि कलयुग में न्याय पाने के लिए लोगों को अपना धन खर्च करना पड़ेगा। इसी के साथ जो व्यक्ति बहुत चालाक और स्वार्थी होगा उसे ही कलयुग में असली विद्वान माना जाएगा।
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केवल इतनी होगी आयु
4. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः कलौ नृणाम्
इसका श्लोक का अर्थ ये है, कि कलयुग युग में लोग भूख, प्यास, चिंताओं और बीमारियों से घिरे रहेंगे। इसी के साथ कलयुग में मध्यांतर में मनुष्य की उम्र केवल बीस या तीस वर्ष की ही होगी।
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सच हो रही है ये बात
5. दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि ॥
इस श्लोक में कहा गया है कि कलयुग में लोग दूर स्थित नदी और तालाबों को तो तीर्थ मानेंगे, लेकिन अपने पास रह रहे माता-पिता का अपमान करेंगे। बड़े-बड़े बाल रखना ही सुंदरता का प्रतीक माना जाएगा और मनुष्य का लक्ष्य केवल पेट भरना ही रह जाएगा। आज के समय में इस बात के उदाहरण तो हमें आसानी से देखने को मिल जाते हैं।
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