Karthigai Deepam 2024: कार्तिगाई दीपम आज, इस तरह करें भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न
प्रत्येक माह में जब कृतिका नक्षत्र प्रबल होता है तब कार्तिगाई दीपम का पर्व मनाया जाता है। ऐसे में आज यानी शुक्रवार 13 दिसंबर को यह पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन विशेष रूप से भगवान मुरुगन (कार्तिकेय भगवान) की पूजा की जाती है। ऐसे में आप इस दिन पर भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्ति के लिए इस श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मासिक कार्तिगाई या कार्तिगाई दीपम (Karthigai Deepam 2024) का पर्व दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। यहां भगवान कार्तिकेय को सकन्द, मुरुगन और सुब्रमण्य के नाम से जाना जाता है। मासिक कार्तिगाई के अवसर पर लोग अपने घर और आस-पास कतार में दीपक जलाते हैं।
माना जाता है कि ऐसा करने से साधक व उसके परिवार भगवान कार्तिकेय की कृपा बनी रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के समक्ष अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए स्वयं को प्रकाश की अनन्त ज्योत में बदल लिया था। इसलिए इस दिन पर ज्योत जलाने का विशेष महत्व माना गया है।
कार्तिगाई दीपम शुभ मुहूर्त (Karthigai Deepam Shubh Muhurat)
कार्तिगाई नक्षत्र का प्रारम्भ 13 दिसंबर को सुबह 07 बजकर 50 मिनट से हो चुका है। वहीं इस नक्षत्र का समापन 14 दिसंबर को प्रातः 05 बजकर 48 मिनट पर होगा। ऐसे में कार्तिगाई दीपम पर्व आज यानी शुक्रवार, 13 दिसंबर को मनाया जाएगा।
श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम् (Sri Subrahmanya Kavach Stotram)
करन्यासः –
ॐ सां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ सीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ सूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ सैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ सः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अङ्गन्यासः –
ॐ सां हृदयाय नमः ।
ॐ सीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ सूं शिखायै वषट् ।
ॐ सैं कवचाय हुम् ।
ॐ सौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सः अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ॥
ध्यानम् ।
सिन्दूरारुणमिन्दुकान्तिवदनं केयूरहारादिभिः
दिव्यैराभरणैर्विभूषिततनुं स्वर्गादिसौख्यप्रदम् ।
अम्भोजाभयशक्तिकुक्कुटधरं रक्ताङ्गरागोज्ज्वलं
सुब्रह्मण्यमुपास्महे प्रणमतां सर्वार्थसिद्धिप्रदम् ॥ [भीतिप्रणाशोद्यतम्]
लमित्यादि पञ्चपूजा ।
ॐ लं पृथिव्यात्मने सुब्रह्मण्याय गन्धं समर्पयामि ।
ॐ हं आकाशात्मने सुब्रह्मण्याय पुष्पाणि समर्पयामि ।
ॐ यं वाय्वात्मने सुब्रह्मण्याय धूपमाघ्रापयामि ।
ॐ रं अग्न्यात्मने सुब्रह्मण्याय दीपं दर्शयामि ।
ॐ वं अमृतात्मने सुब्रह्मण्याय स्वादन्नं निवेदयामि ।
ॐ सं सर्वात्मने सुब्रह्मण्याय सर्वोपचारान् समर्पयामि ।
कवचम् ।
सुब्रह्मण्योऽग्रतः पातु सेनानीः पातु पृष्ठतः ।
गुहो मां दक्षिणे पातु वह्निजः पातु वामतः ॥ 1 ॥
शिरः पातु महासेनः स्कन्दो रक्षेल्ललाटकम् ।
नेत्रे मे द्वादशाक्षश्च श्रोत्रे रक्षतु विश्वभृत् ॥ 2 ॥
मुखं मे षण्मुखः पातु नासिकां शङ्करात्मजः ।
ओष्ठौ वल्लीपतिः पातु जिह्वां पातु षडाननः ॥ 3 ॥
देवसेनापतिर्दन्तान् चिबुकं बहुलोद्भवः ।
कण्ठं तारकजित्पातु बाहू द्वादशबाहुकः ॥ 4 ॥
हस्तौ शक्तिधरः पातु वक्षः पातु शरोद्भवः ।
हृदयं वह्निभूः पातु कुक्षिं पात्वम्बिकासुतः ॥ 5 ॥
नाभिं शम्भुसुतः पातु कटिं पातु हरात्मजः ।
ऊरू पातु गजारूढो जानू मे जाह्नवीसुतः ॥ 6 ॥
जङ्घे विशाखो मे पातु पादौ मे शिखिवाहनः ।
सर्वाण्यङ्गानि भूतेशः सर्वधातूंश्च पावकिः ॥ 7 ॥
सन्ध्याकाले निशीथिन्यां दिवा प्रातर्जलेऽग्निषु ।
दुर्गमे च महारण्ये राजद्वारे महाभये ॥ 8 ॥
तुमुले रण्यमध्ये च सर्वदुष्टमृगादिषु ।
चोरादिसाध्वसेऽभेद्ये ज्वरादिव्याधिपीडने ॥ 9 ॥
दुष्टग्रहादिभीतौ च दुर्निमित्तादिभीषणे ।
अस्त्रशस्त्रनिपाते च पातु मां क्रौञ्चरन्ध्रकृत् ॥ 10 ॥
यः सुब्रह्मण्यकवचं इष्टसिद्धिप्रदं पठेत् ।
तस्य तापत्रयं नास्ति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ 11 ॥
धर्मार्थी लभते धर्ममर्थार्थी चार्थमाप्नुयात् ।
कामार्थी लभते कामं मोक्षार्थी मोक्षमाप्नुयात् ॥ 12 ॥
यत्र यत्र जपेद्भक्त्या तत्र सन्निहितो गुहः ।
पूजाप्रतिष्ठाकाले च जपकाले पठेदिदम् ॥ 13 ॥
तेषामेव फलावाप्तिः महापातकनाशनम् ।
यः पठेच्छृणुयाद्भक्त्या नित्यं देवस्य सन्निधौ ।
सर्वान्कामानिह प्राप्य सोऽन्ते स्कन्दपुरं व्रजेत् ॥ 14 ॥
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उत्तरन्यासः ॥
करन्यासः –
ॐ सां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ सीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ सूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ सैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ सः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अङ्गन्यासः –
ॐ सां हृदयाय नमः ।
ॐ सीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ सूं शिखायै वषट् ।
ॐ सैं कवचाय हुम् ।
ॐ सौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सः अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥
इति श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम् ।
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