Sakat Chauth 2026 Date: कब है सकट चौथ व्रत? अभी नोट करें तिथि और शुभ मूहर्त
सनातन धर्म में सकट चौथ (Sakat Chauth 2026) के त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं विधिपूर्वक व्रत और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करती हैं। धार्मिक ...और पढ़ें

Sakat Chauth 2026: सकट चौथ व्रत का धार्मिक महत्व (AI Generated Image)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर सकट चौथ (Sakat Chauth 2026) का व्रत किया जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को महिलाएं संतान की दीर्घायु और बेहतर भविष्य के लिए व्रत करती हैं। साथ ही गणपति बप्पा की विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सकट चौथ का व्रत को करने से संतान के जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं सकट चौथ का शुभ मुहूर्त और चांद निकलने का टाइम।
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(AI Generated Image)
सकट चौथ 2026 डेट और शुभ मुहूर्त (Sakat Chauth 2026 Date and Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 06 जनवरी को सुबह 08 बजकर 01 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 07 जनवरी को सुबह 06 बजकर 52 मिनट पर होगा। ऐसे में 06 जनवरी (Sakat Chauth 2026 Kab Hai) को सकट चौथ का व्रत किया जाएगा।
चांद निकलने का समय (Sakat Chauth 2026 Ka Chand Kab Niklega)
सकट चौथ व्रत का पारण चंद्र दर्शन करने के बाद ही किया जाता है। इस दिन चंद्रोदय (Sakat Chauth 2026 Moon Rise Time) रात 09 बजे होगा। ऐसे में चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें।
सकट चौथ का धार्मिक महत्व
सकट चौथ का पर्व भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाएं संतान सुख की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। साथ ही गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना करती हैं। इससे संतान को लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
सकट चौथ पूजा विधि (Sakat Chauth Puja Vidhi)
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और गणेश जी का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजमान करें।
- सिंदूर, फूल, दूर्वा अर्पित करें।
- व्रत कथा का पाठ करें।
- रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें।
गणेश मंत्र
1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
2. ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्
3. 'गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।
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