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    Kalashtami 2024: इस चालीसा के पाठ से काल भैरव देव होते हैं प्रसन्न, दूर होते हैं सभी दुख एवं संकट

    काल भैरव देव को काशी का कोतवाल (Kalashtami 2024) कहा जाता है। काशी के कोतवाल की पूजा भक्ति करने से साधक को पृथ्वी लोक पर सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। साधक श्रद्वा भाव से भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा करते हैं।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 20 Dec 2024 08:15 AM (IST)
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    Kalashtami 2024: काल भैरव देव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कालाष्टमी का पर्व हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि या सफलता पाने के लिए कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं शांति आती है। पौष महीने में 22 दिसंबर को मासिक कालाष्टमी है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में भगवान शिव और उनके रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा जाएगी। अगर आप भी काल भैरव देव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो कालाष्टमी पर भक्ति भाव से भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय काल भैरव चालीसा का पाठ करें।

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    श्री भैरव चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    श्री भैरव सङ्कट हरन,मंगल करन कृपालु।

    करहु दया जि दास पे,निशिदिन दीनदयालु॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय डमरूधर नयन विशाला। श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥

    जय त्रिशूलधर जय डमरूधर। काशी कोतवाल, संकटहर॥

    जय गिरिजासुत परमकृपाला। संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥

    जयति बटुक भैरव भयहारी। जयति काल भैरव बलधारी॥

    अष्टरूप तुम्हरे सब गायें। सकल एक ते एक सिवाये॥

    शिवस्वरूप शिव के अनुगामी। गणाधीश तुम सबके स्वामी॥

    जटाजूट पर मुकुट सुहावै। भालचन्द्र अति शोभा पावै॥

    कटि करधनी घुँघरू बाजै। दर्शन करत सकल भय भाजै॥

    कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर। मोरपंख को चंवर मनोहर॥

    खप्पर खड्ग लिये बलवाना। रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥

    वाहन श्वान सदा सुखरासी। तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥

    जय जय जय भैरव भय भंजन। जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥

    नयन विशाल लाल अति भारी। रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥

    बं बं बं बोलत दिनराती। शिव कहँ भजहु असुर आराती॥

    एकरूप तुम शम्भु कहाये। दूजे भैरव रूप बनाये॥

    सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी। सब जग के तुम अन्तर्यामी॥

    रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा। श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥

    श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी। तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥

    तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं। सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥

    व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी। प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥

    चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा। निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥

    क्रोधवत्स भूतेश कालधर। चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥

    अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे। जयत सदा मेटत दुःख भारे॥

    चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा। क्रोधवान तुम अति रणरंगा॥

    भूतनाथ तुम परम पुनीता। तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥

    वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा। कालजयी तुम परम अनूपा॥

    ऐलादी को संकट टार्यो। साद भक्त को कारज सारयो॥

    कालीपुत्र कहावहु नाथा। तव चरणन नावहुं नित माथा॥

    श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु। दीन जानि मोहि पार उतारहु॥

    भवसागर बूढत दिनराती। होहु कृपालु दुष्ट आराती॥

    सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै। मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥

    करहुँ सदा भैरव की सेवा। तुम समान दूजो को देवा॥

    अश्वनाथ तुम परम मनोहर। दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥

    तम्हरो दास जहाँ जो होई। ताकहँ संकट परै न कोई॥

    हरहु नाथ तुम जन की पीरा। तुम समान प्रभु को बलवीरा॥

    सब अपराध क्षमा करि दीजै। दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥

    जो यह पाठ करे चालीसा। तापै कृपा करहु जगदीशा॥

    ॥ दोहा ॥

    जय भैरव जय भूतपति,जय जय जय सुखकंद।

    करहु कृपा नित दास पे,देहुं सदा आनन्द॥

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