Paush Kalashtami 2024 Date: पौष महीने में कब है कालाष्टमी? जानें, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि
सनातन शास्त्रों में निहित है कि काल भैरव देव (Paush Kalashtami 2024 Date) की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में मंगल ही मंगल होता है। साधक श्रद्धा भाव से कालाष्टमी तिथि पर काल भैरव देव की पूजा एवं उपासना करते हैं। काल भैरव देव की साधना करने से जातक को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव को समर्पित होता है। इस दिन काल भैरव देव की पूजा की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सफलता पाने के लिए कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। आइए, पौष माह की कालाष्टमी की तिथि एवं शुभ मुहूर्त (Paush Kalashtami 2024 Date) जानते हैं-
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कालाष्टमी शुभ मुहूर्त (Kalashtami Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 दिसंबर को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, 23 दिसंबर को शाम 05 बजकर 07 मिनट पर पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी समाप्त होगी। निशा काल में काल भैरव देव की पूजा की जाती है। इसके लिए 22 दिसंबर को पौष महीने की कालाष्टमी मनाई जाएगी।
कालाष्टमी शुभ योग (Kalashtami Shubh Yog)
पौष माह की कालाष्टमी पर आयुष्मान और सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है। आयुष्मान योग का संयोग संध्याकाल 07 बजे तक है। इसके बाद सौभाग्य योग का भी निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, त्रिपुष्कर योग का भी निर्माण हो रहा है। इन योग में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। साथ ही सभी बिगड़े काम बन जाएंगे।
पंचांग
सूर्योदय - सुबह 07 बजकर 10 मिनट पर
सूर्यास्त - शाम 05 बजकर 30 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 05 बजकर 21 मिनट से 06 बजकर 16 मिनट तक
विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 03 मिनट से 03 बजकर 44 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 27 मिनट से 05 बजकर 44 मिनट तक
निशिता मुहूर्त - रात्रि 11 बजकर 53 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक
पूजा विधि
पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें। इस समय भगवान शिव को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। अब दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद स्नान-ध्यान करें। इस समय सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें। पूजा में सफेद रंग के फल, फूल, मिष्ठान आदि चीजें अर्पित करें। इस समय काल भैरव देव चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख, समृद्धि एवं धन में वृद्धि की कामना करें।
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