Janmashtami 2025: क्या है कृष्ण जन्माष्टमी के पारण का सही नियम? एक क्लिक में जानें पूरी डिटेल्स
जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) का व्रत पूरे दिन और रात तक चलता है जिसमें भक्त निर्जला या फलाहार व्रत रखते हैं। इस व्रत का समापन सही समय और विधि से करना महत्वपूर्ण है। व्रत का पारण अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर करना चाहिए तो आइए यहां पारण का नियम जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जन्माष्टमी का व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है, क्योंकि यह व्रत पूरे दिन और रात तक चलता है। जन्माष्टमी के दिन भक्तजन निर्जला या फलाहार व्रत रखकर भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। इस व्रत का समापन सही समय पर और सही विधि से करना बहुत महत्वपूर्ण होता है, तो आइए इस व्रत (Janmashtami 2025) का पारण कैसे करना है? इस आर्टिकल में जानते हैं।
जन्माष्टमी व्रत के पारण का महत्व
जन्माष्टमी का व्रत भगवान कृष्ण के जन्म के बाद ही खोला जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, व्रत का पारण तब करना चाहिए, जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों समाप्त हो जाएं। हालांकि, कई बार यह संयोग एक साथ नहीं बनता, जिस वजह से पारण को लेकर लोगों के मन में थोड़ी कन्फ्यूजन बनी होती है। ऐसे में पंचांग के अनुसार पारण समय पर व्रत खोलें।
पारण मुहूर्त
- निशिता पूजा के बाद - कई भक्त रात 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाने और पूजा करने के तुरंत बाद ही व्रत का पारण कर लेते हैं। यह एक सामान्य तरीका है, खासकर जब अष्टमी तिथि का समय अगले दिन सुबह तक रहता है।
- अष्टमी तिथि के बाद - शास्त्र के अनुसार, व्रत का पारण अष्टमी तिथि के समाप्त होने के बाद ही करना चाहिए। 2025 में अष्टमी तिथि 16 अगस्त को रात 9:34 बजे समाप्त हो रही है। इसलिए, आप इस समय के बाद भी व्रत खोल सकते हैं।
- रोहिणी नक्षत्र के बाद - कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद ही पारण करते हैं। 2025 में रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त को सुबह 4:38 बजे से शुरू होकर 18 अगस्त को सुबह 3:17 बजे समाप्त होगा।
पारण विधि
- व्रत खोलने से पहले भगवान कृष्ण की विधि-विधान से पूजा करें, उन्हें भोग लगाएं और आरती करें।
- व्रत का पारण भगवान को अर्पित किए गए भोग के प्रसाद से ही करें। इसमें माखन-मिश्री, धनिया पंजीरी और फल शामिल हो सकते हैं।
- पारण के बाद सात्विक भोजन ही ग्रहण करें, जिसमें प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन का प्रयोग न हो।
- तामसिक चीजों से दूर रहें।
- पारण के बाद क्षमता अनुसार दान करें।
- पारण करते समय कान्हा का नाम मन ही मन में लेते रहें।
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