Janmashtami पर क्यों सजाई जाती है 56 भोग की थाली? जानें कैसे हुई शुरुआत और क्या-क्या होता है शामिल
आज यानी कि 16 अगस्त को जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) का त्योहार धूमधाम से पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस दिन कृष्ण भक्त व्रत रखते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। कहा जाता है जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को छप्पन भोग अर्पित करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा भी प्राप्त होती है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों और घरों में खास तरह से सजावट की जाती है। लोग भजन-कीर्तन करते हैं। इस दिन भक्त पूरे उत्साह के साथ व्रत रखते हैं। इस खास मौके पर भगवान को तरह-तरह के व्यंजन भोग में लगाए जाते हैं। इन्हें ही ‘छप्पन भोग’ कहा जाता है। छप्पन भोग में मिठाइयों से लेकर नमकीन और ड्रिंक्स तक शामिल होते हैं। यहां हर स्वाद का संगम देखने को मिलता है।
भक्तजन पूरे मन से इन व्यंजनों की तैयारी करते हैं और सजाकर भगवान के चरणों में अर्पित करते हैं। ये परंपरा सिर्फ भोजन का नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक भी है। जन्माष्टमी पर छप्पन भोग की थाली सजाना, भक्तों के लिए अपने आराध्य को खुश करने का एक सुंदर और पवित्र तरीका माना जाता है। इसमें हर व्यंजन के साथ उनकी भावनाएं और आस्था भी जुड़ी होती है। हम आपको बताएंगे कि भगवान कृष्ण को छप्पन भाेग लगाने की परंपरा कहां से शुरू हुई। साथ ही ये भी जानेंगे कि थाली में कौन-कौन से व्यंजनों को शामिल किया जाता है-
श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाने की परंपरा
कहा जाता है कि एक बार ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए एक खास पूजा की तैयारी में जुटे थे। उस समय भगवान कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि ये पूजा किसलिए की जा रही है। तो नंद बाबा ने बताया कि इस तरह के पूजा से देवराज इंद्र खुश होंगे। इससे बारिश भी अच्छी हाेगी। इस पर बाल गोपाल ने कहा कि बारिश करना तो इंद्र देव का काम है, फिर इसके लिए खास पूजा क्यों?
गुस्सा होकर इंद्र देव ने शुरू कर दी बारिश
उन्होंने कहा कि अगर पूजा करनी ही है, तो हमें गोवर्धन पर्वत का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि उसी से हमें अनाज, फल-सब्जियां और पशुओं के लिए चारा मिलता है। भगवान कृष्ण की ये बात ब्रजवासियों के दिल को छू गई और उन्होंने इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की। ये देखकर इंद्र देव गुस्सा हो गए। उन्होंने ब्रज में भारी बारिश शुरू कर दी। मूसलधार बारिश से डरकर सभी लोग नंद बाबा के पास पहुंचे।
सात दिनों तक कुछ नहीं खाए थे भगवान कृष्ण
उस दौरान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी सी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी को उसके नीचे आने को कहा। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण सात दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए पर्वत को थामे रहे, जब तक कि देवराज इंद्र ने बारिश रोक नहीं दी। आठवें दिन जब सब कुछ शांत हुआ, तो ब्रजवासियों को याद आया कि इतने दिनों से कृष्ण ने कुछ खाया ही नहीं है। तब उन्होंने माता यशोदा से पूछा कि कान्हा को रोज कितनी बार भोजन कराया जाता है।
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इस तरह ब्रजवासियों ने तैयार किया छप्पन भोग
उस समय यशोदा मैया ने कहा कि वो दिन में आठ बार लल्ला को भोजन कराती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासियों ने सात दिनों के हिसाब से हर बार के आठ अलग-अलग व्यंजन तैयार किए। ये सभी व्यंजन भगवान कृष्ण को बहुत पसंद थे। इस तरह कुल 56 तरह के भोग बनाए गए। इसके बाद 56 भोग को भगवान कृष्ण को अर्पित किए। तभी से ‘छप्पन भोग’ की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि छप्पन भोग से भगवान कृष्ण बहुत खुश होते हैं।
छप्पन भोग में ये व्यजंन होते हैं शामिल
पंजीरी, माखन-मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, जीरा-लड्डू, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल का हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू-बादाम की बर्फी, पिस्ता बर्फी, पंचामृत, गोघृत, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकौड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूड़ी, टिक्की, दलिया, देसी घी, शहद, सफेद-मक्खन, ताजी क्रीम, कचौड़ी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान और मेवा छप्पन भोग में शामिल किए जाते हैं।
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