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    Rahu Antardasha: कितने साल तक चलती है राहु की अंतर्दशा और कैसे करें छाया ग्रह को प्रसन्न?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sat, 19 Jul 2025 02:00 PM (IST)

    देवों के देव महादेव सोमवार का दिन समर्पित है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही सोमवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष राहु और केतु (Rahu Antardasha) की कृपा पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने की सलाह देते हैं।

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    Rahu Antardasha: मायावी ग्रह को कैसे करें प्रसन्न?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। राहु और केतु एक राशि में डेढ़ साल तक रहते हैं। वर्तमान समय में छाया ग्रह केतु सिंह राशि में विराजमान हैं। वहीं, मायावी ग्रह राहु कुंभ राशि में उपस्थित हैं।

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    राहु और केतु की कुदृष्टि पड़ने पर जातक को जीवन में नाना प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आपको पता है कि राहु की अंतर्दशा कितने साल तक चलती है और कैसे मायावी ग्रह को प्रसन्न करें? आइए जानते हैं-

    मायावी ग्रह राहु को कैसे करें प्रसन्न?

    देवों के देव महादेव की पूजा करने से राहु और केतु प्रसन्न होते हैं। इसके लिए सोमवार और शनिवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद काले तिल मिश्रित गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके साथ ही जटा वाला नारियल बहती जलधारा में प्रवाहित करें। वहीं, काले श्वान (कुत्ते) को भी रोटी खिलाने से राहु और केतु की कुदृष्टि समाप्त हो जाती है।

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    राहु की अंतर्दशा

    ज्योतिषियों की मानें तो राहु की अंतर्दशा दो साल आठ महीने की होती है। वहीं, राहु की महादशा 18 साल की होती है। राहु महादशा के दौरान सबसे पहले राहु की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। इसके बाद सभी शुभ और अशुभ ग्रहों की अंतर्दशा चलती है। सूर्य-चंद्र और गुरु की अंतर्दशा में राहु शुभ फल नहीं देते हैं। राहु की कृपा से जातक को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जातक अपने जीवन में तरक्की और उन्नति की राह पर अग्रसर रहता है।

    शिव मंत्र

    1. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

    उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

    परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

    सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

    वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

    हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

    एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।

    2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

    उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

    3. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

    4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

    5. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।

    विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।