ब्रह्मा, विष्णु और देवों के देव महादेव में कौन हैं सबसे श्रेष्ठ ?
देवों के देव महादेव की महिमा निराली है। भगवान शिव (Lord Shiva) के शरणागत रहने वाले साधकों को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में निहित है कि महज जलाभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। इसके लिए भगवान शिव के अनुयायियों की संख्या सबसे अधिक है। भगवान शिव की कृपा से साधक के सभी दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में भगवान शिव के अनुयायियों की संख्या सबसे अधिक है। भगवान शिव के अनुयायियों को शैव कहा जाता है। वहीं, भगवान विष्णु की उपासना करने वाले भक्तों को वैष्णव कहा जाता है। हालांकि, सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्म देव के उपासकों की संख्या सबसे कम है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में भगवान विष्णु एवं ब्रह्माजी के मध्य श्रेष्ठता को लेकर वाक्य द्व्न्द हो गया था। इस द्व्न्द को भगवान शिव ने सुलझाया था। उस समय भगवान विष्णु को श्रेष्ठ घोषित किया गया था। अब बात आती है कि अगर भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, तो शिव के उपासकों की संख्या सबसे अधिक क्यों है ? इसका वर्णन स्कंद पुराण में वर्णित है। आइए, स्कंद पुराण के माध्यम से जानते हैं कि त्रिदेव में कौन सबसे श्रेष्ठ हैं ?
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कौन हैं सर्वश्रेष्ठ ?
स्कंद पुराण में वर्णित है कि नैमिषारण्यनिवासी मुनि तीनों देवों में श्रेष्ठता को लेकर असमंजस में थे। उनके मन में कल्मष आया कि कौन सबसे श्रेष्ठ हैं ? उस समय ऋषि मुनिगण ब्रह्म लोक गये। ब्रह्माजी को ध्यान और प्रणाम कर अपनी दुविधा बताई। ऋषि मुनियों का संवाद सुनकर ब्रह्माजी ने निम्न श्लोक का पाठ किया।
अनन्ताय नमस्तस्मै यस्यान्तो नोपलभ्यते।
महेशाय च द्वावेतौ मयि स्तां सुमुखौ सदा।।
इस श्लोक के माध्यम से ब्रह्मा जी कहते हैं- मैं उन भगवान अनंत को नमस्कार करता हूं, जिनका कहीं अंत नहीं मिला, जो सबसे श्रेष्ठ हैं। मैं भगवान शिव को नमस्कार करता हूं। मैं जगत के पालनहार भगवन विष्णु को नमस्कार करता हूं। आप दोनों मुझ पर प्रसन्न रहें।
यह सुन ऋषि मुनि निश्चित हो गये कि भगवान विष्णु और भगवान शिव श्रेष्ठ हैं। इसके लिए सभी क्षीर सागर में भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु को प्रणाम कर अपनी दुविधा बताई। साथ ही ब्रह्माजी से प्राप्त उत्तर की भी जानकारी दी। तब भगवान विष्णु ने निम्न श्लोक का पाठ किया।
ब्रह्माणं सर्वभूतेषु परमं ब्रह्मरूपिणम्।।
सदाशिवं च वन्दे तौ भवेतां मङ्गलाय मे।
इस श्लोक के माध्यम से भगवान विष्णु कहते हैं- मैं संपूर्ण भूतों में व्यापक परब्रह्म स्वरूप भगवान ब्रह्मा और सदाशिव को प्रणाम करता हूँ। यह सुनकर ऋषि मुनि गहन सोच में पड़ गये कि भगवान विष्णु तो ब्रह्माजी का गुणगान कर रहे हैं। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान शिव सबसे श्रेष्ठ हैं। यह सोच सभी भगवान शिव के पास कैलाश पहुंचे। देवों के देव महादेव को प्रणाम कर ऋषि-मुनियों ने अपनी आपबीती सुनाई। उस समय भगवान शिव ने श्लोक पाठ कर कहा।
एकादश्यां प्रनृत्यामि जागरे विष्णुसप्रनि।।
सदा तपस्यश्चारामि प्रीत्यर्थं हरिवेध्सोः।
इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव ने कहा- मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए एकादशी तिथि पर मंदिर में रात्रि जागरण कर नृत्य करता हूं। साथ ही दोनों की प्रसन्नता के लिए तपस्या करता हूं। यह सुनकर सभी ऋषि मुनि आश्चर्यचिकत हो गये। उस समय सभी ऋषि-मुनि भगवान शिव को प्रणाम कर प्रस्थान कर गये। इसका अभिप्राय यह है कि त्रिदेव एक हैं। त्रिदेव की महिमा अपरंपार है। ये सर्वश्रेष्ठ हैं। इनमें कोई द्व्न्द और अंतर नहीं है। ये सर्व व्याप्त हैं। इन्होंने ही ब्रह्मांड का आवरण किया है।
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