Ketu Mahadasha: कितने साल तक चलती है केतु की महादशा और कैसे करें मायावी ग्रह को प्रसन्न?
ज्योतिष गणना के अनुसार मायावी ग्रह राहु और केतु 18 मई को राशि परिवर्तन करेंगे। इस दिन राहु मीन राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। वहीं केतु कन्या राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। राहु और केतु के राशि परिवर्तन से मीन और कन्या राशि वालों को मायावी ग्रह से मुक्ति मिलेगी।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में केतु को मायावी ग्रह माना जाता है। मायावी केतु हमेशा वक्री चाल चलते हैं। वक्री चाल चलकर ही केतु राशि परिवर्तन करते हैं। वर्तमान समय में केतु कन्या राशि में विराजमान हैं और जल्द ही मायावी ग्रह केतु अपनी स्थिति बदलेंगे। राहु और केतु के राशि परिवर्तन से दो राशि के जातकों को मायावी ग्रह से मुक्ति मिलेगी। लेकिन क्या आपको पता है कि केतु की महादशा कितने साल तक चलती है और कैसे मायावी ग्रह केतु से मुक्ति पा सकते हैं?
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केतु की महादशा
ज्योतिषियों की मानें तो केतु की महादशा तकरीबरन 7 साल तक चलती है। इस दौरान सबसे पहले केतु की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। इस दौरान जातक को केतु के उच्च में रहने पर शुभ फल मिलता है। वहीं, नीच केतु से जातक कई बार भ्रम में गलत फैसले ले लेता है। करियर और कारोबार संबंधी परेशानी भी होती है। लाख चाहकर भी जातक अपने जीवन में सफल नहीं हो पाता है। वहीं, सूर्य, चंद्र और गुरु की अंतर्दशा में केतु शुभ फल नहीं देते हैं।
इसके बाद क्रमश: शुक्र और सर्य की अंतर्दशा एवं प्रत्यंतर दशा चलती है। केतु की अंतर्दशा पांच महीने तक रहती है। इसके बाद शुक्र की अंतर्दशा चलती है। केतु की महादशा में अच्छे कर्म करने पर जातक को शुभ फल मिलता है। इसके साथ ही भगवान शिव की पूजा करने से भी केतु की महादशा में जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
केतु को कैसे प्रसन्न करें?
ज्योतिषियों की मानें तो देवों के देव महादेव की पूजा करने से कुंडली में व्याप्त केतु समेत सभी अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। साथ ही मायावी ग्रह केतु प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से साधक के जीवन में व्याप्त परेशानी दूर हो जाती है। इसके लिए हर सोमवार और शनिवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके साथ ही शनिवार के दिन बहती जलधारा में जटा वाला नारियल बहाएं।
शिव मंत्र
1. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।
2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
3. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
5. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
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