Chandra Mahadasha: कितने साल तक चलती है चंद्र की महादशा और कैसे करें सोम देव को प्रसन्न?
देवों के देव महादेव को भालचंद्र भी कहते हैं। आसान शब्दों में कहें तो चंद्रमा (Chandra Mahadasha) को शीश पर धारण करने के लिए भगवान शिव को भालचंद्र कहा जाता है। भगवान शिव की पूजा करने से चंद्र देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। चंद्र देव अपनी कृपा साधक पर बरसाते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में चंद्र देव को मन का कारक माना जाता है। चंद्र देव मार्गी चाल चलते हैं। एक राशि में दो दिन तक रहने के बाद चंद्र देव राशि परिवर्तन करते हैं। चंद्र देव की कृपा बरसने से जातक को शुभ कामों में सफलता मिलती है। साथ ही जातक हमेशा प्रसन्नचित रहता है। वहीं, चंद्रमा के कमजोर रहने पर जातक कई बार सही फैसले लेने में असमर्थ रहता है। इसके लिए ज्योतिष कुंडली में चंद्रमा मजबूत करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि चंद्र की महादशा कितने साल तक चलती है और कैसे सोम देव को प्रसन्न कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें: जीवन की मुश्किलें बढ़ा सकता है राहु, इन अचूक उपायों से मिलेगी राहत
चंद्र की महादशा
ज्योतिषियों की मानें तो चंद्र की महादशा तकरीबरन 10 साल तक चलती है। इस दौरान सबसे पहले चंद्र की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। चंद्र देव वृषभ राशि और कर्क राशि के जातकों को शुभ फल देते हैं। कुंडली में चंद्रमा मजबूत रहने पर जातक अहम फैसले लेने में समर्थवान रहता है। शुभ ग्रहों के साथ रहने पर चंद्र देव शुभ फल देते हैं। वहीं, राहु और केतु की अंतर्दशा में शुभ फल नहीं देते हैं।
इसके बाद क्रमश: मंगल और राहु की अंतर्दशा एवं प्रत्यंतर दशा चलती है। केतु की अंतर्दशा दस महीने तक रहती है। इसके मंगल शुक्र की अंतर्दशा चलती है। चंद्र की महादशा में अच्छे कर्म करने पर जातक को शुभ फल मिलता है। साथ ही भगवान शिव की पूजा करने से भी चंद्र की महादशा में जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
चंद्र देव को कैसे प्रसन्न करें?
ज्योतिषियों की मानें तो देवों के देव महादेव की पूजा करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं। इसके लिए हर सोमवार और शुक्रवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद गाय के कच्चे दूध से भगवान शिव का अभिषेक करें। आप चाहे तो दूध में गंगाजल मिलाकर भी महादेव का अभिषेक कर सकते हैं। इसके साथ ही सफेद चीजों का दान करें। इन उपायों को करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं।
शिव मंत्र
1. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।
2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
3. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
5. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
यह भी पढ़ें: कुंडली में कैसे बनता है शेषनाग कालसर्प दोष? इन उपायों से करें दूर
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।