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    Holi 2025: कब से हुई रंगों के त्योहार होली खेलने की शुरुआत? पढ़ें पौराणिक कथा

    होली का त्योहार हर साल धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह भगवान भगवान कृष्ण और राधा रानी के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। यह देश के हर क्षेत्रों में मनाई जाती है और सभी के अपने-अपने रिति-रिवाज हैं। इस साल यह पर्व (Holi 2025) फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि यानी 14 मार्च 2025 को मनाई जाएगी तो चलिए यहां इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ते हैं -

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 03 Mar 2025 01:56 PM (IST)
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    Holi 2025: होली से जुड़ी पौराणिक कथा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रंगों का त्योहार होली जल्द ही आने वाला है। दिवाली के बाद भारत में सबसे बड़े त्योहारों में से एक, होली का पर्व माना जाता है, जो बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व दो दिन तक चलता है। रंगों वाली होली छोटी होली यानी होलिका दहन के बाद आती है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। बता दें कि यह पर्व हर साल हिंदू महीने फाल्गुन में आता है।

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    इस साल यह 14 मार्च को मनाया जाएगा। वहीं, इस पर्व (Holi 2025) को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है, आइए पढ़ते हैं।

    ऐसे शुरू हुई रंगों वाली होली

    • ''फाल्गुने पूर्णिमायां तु होलिकापूजनं मतम्।।

      संचयं सर्वकाष्ठानामुपलानां च कारयेत्। तत्राग्निं विधिवद्ध्रुत्वा रक्षोघ्नैर्मंत्रविस्तरैः।।

      असृक्पाभयसंत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः। अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।

      इति मंत्रेण सन्दीप्य काष्ठादिक्षेपणैस्ततः। परिक्रम्योत्सवः कार्य्यो गीतवादित्रनिःस्वनैः।।

      होलिका राक्षसी चेयं प्रह्लादभयदायिनी। ततस्तां प्रदहंत्येवं काष्ठाद्यैर्गीतमंगलैः।।

      संवत्सरस्य दाहोऽयं कामदाहो मतांतरे। इति जानीहि विप्रेंद्र लोके स्थितिरनेकधा।।''

      (नारद पुराण में होली से संबंधित यह श्लोक है।)

    होली का त्योहार श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम का भी प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान कृष्ण भगवान ने अपनी मां यशोदा से पूछा था कि वह अपने गहरे नीले रंग और बहुत अलग त्वचा से राधा रानी को कैसे खुश करें? उनकी इस बात को सुनकर यशोदा मां ने श्रीकृष्ण को राधा रानी को अपने रंग में रंगने की सलाह दी थी।

    फिर भगवान कृष्ण ने देवी राधा से अपने प्यार का इजहार किया और मजाक में उनकी त्वचा को अपनी त्वचा जैसा बना दिया। तब से, राधा-कृष्ण के प्रेम का सम्मान करने के लिए लोग रंगों वाली होली मनाने लगे।

    जब शिव जी ने कामदेव को कर दिया था भस्म

    कुमारसंभवम् में महान कवि कालिदास जी ने इसका वर्णन किया है कि एक बार सती माता की मृत्यु होने के बाद शिव जी इतने गहरे ध्यान में लीन हो गए थे कि पूरा जगत दुखों से घिर गया था। फिर देवी सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया, लेकिन शिव जी ध्यान में इतना लीन थे कि उन्हें प्रसन्न करने के माता पार्वती के सभी प्रयास विफल हो गए। इसके बाद उन्होंने कामदेव से सहायता मांगी। तब कामदेव ने शिव जी की इंद्रियों को जाग्रत करने की कोशिश की, इससे भोलेनाथ क्रोधित होकर ध्यान से जाग गए और काम देव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया।

    जब शिव जी को इसके पीछे की वजह पता चली, तो उन्होंने उनकी मदद करने का वादा किया। ऐसा कहा जाता है कि होली ही वह दिन है जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। तभी से उनके बलिदान के परिणामस्वरूप, दक्षिण भारत के लोग इस दिन उनकी पूजा करने लगे।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।